पथचिन्ह | Pathachihna
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
137
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शांतिप्रिय द्विवेदी - Shantipriy Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का धारण और पोषण । श्रद्धा वस्तुतः सब प्रकार के भावों का प्रतीक
है । श्रद्धा अथवा साध से संपादित कर्म ही समर्थ होता है, सफल होता
हे-'पदेव श्रुद्धणा करोति तदेव वीयेंवत्तरं भवति' (छान्दोग्य०)। बुद्धि और
श्रद्धा के असामञ्जस्य से ही संसार में नाना प्रकार के उत्पात खड़े होते
हैं । बुद्धिवादी मानव जब श्रद्धा का अनुशासन नहीं मानता और हृदय-
हीन होकर वत्तेमान यग के सबसे बड़े लक्ष्य 'अर्थ ' को ही परमार्थ समझ
कर स्वायत्त करना चाहता है तभी ऐसा दुरन्त संघषं उठ खड़ा होता
हे । दस दावाग्नि का शमन श्रद्धा ही करती हँ--
जहाँ मरु ज्वाला धषधकेती, चातकी कन को तरसती;
उन्हीं जीवन-घाटियों की र्मे सरस बरसात रे मन!
--(कामायनी' : श्रद्धागीत ) ।
श्री शान्तिप्रिय द्विवेदी ने इसी अवमानित श्रद्धा के भाव को संस्कृति
ओर कला के माध्यम से पुनः प्रतिष्ठित करने की विचारणा जत शत
भावप्रवण बचनों में उपस्थित की हे ।
वे आज कल कौ शिक्षा-दीक्षासे भी सन्तुष्ट नहं हं । उनकी यह्
आकांक्षा हं कि जेते आधुनिक विद्यालयों से विद्याप्नातक निकलते हं वेसे
ही ब्रतस्नातक भी निकले, क्योकि संसार को इस समय ब्रतियोंकी
आवश्यकता अधिक ह । रामचन्द्र (सम्यग् विद्याव्रतस्नातः' थे। इसीलिए
रामराज्य सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता हूं ।
मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक जसे मुझे प्रिय लगी है वेसे ही मेरे
समानधर्मा प्रत्येक पाठक को प्रिय लंगेगी।
शान्तिप्रिय ने अपने हृद्गत भावों की तात्विक व्यञ्जना के लिए
कुछ नये शब्दों की भी सृष्टि को है जो इलाघ्य है। कहीं-कहीं कुछ
दाब्दिक त्रुटियाँ रह गई हे जिनका संशोधन आवश्यक हे ।
काशी,
य केशवप्रसाद मिश्र
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