समणसुत्तम | Samanasuttam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : समणसुत्तम - Samanasuttam

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कैलाशचंद्र शास्त्री - Kailashchandra Shastri

Add Infomation AboutKailashchandra Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
गुणों का समग्र अनुभव एक साथ कर ही नही पाता, अभिव्यक्ति तो दूर की बात है । भाषा की असमर्थता और णब्दाथ की सीमा जहाँ-तहाँ झगडे और विवाद पैदा करती है। मनुष्य का अह उसमें और वृद्धि करता है । लेकिन अनेकान्त समन्वय का, विरोध-परिहार का माग प्रशस्त करता है । सवके कथन मे सत्याद होता है गौर उन सत्याशो को समझकर विवाद को सरलता से द्र किया जा सकता है 1 जिसका अपना कोई हठ या कदाग्रह नही होता, वही अनेकान्त के द्वारा शूत्थियो को भरीर्भाति मुलज्ञा सकता है । यो प्रत्येक मनुप्य अनेकान्त मे जीता है, परन्तु उसके घ्यान मे नहौ जा रहा है कि वह ज्योति कहाँ है जिससे वह प्रकाणित है । आंखो पर जव तकं आग्रह की पटूटी वेधी रहती है, तव तक वस्तुस्वस्प का सही दशन नही हो सकता । अनेकान्त वस्तु या पदार्थं की स्तत्र सत्ता का उदूघोप करतां ই । विचार-जगत्‌ में अहिसा का मूतरूप अनेकान्त है। जो अहिसक होगा वह अनेकान्ती होगा और जो अनेकान्ती होगा, वह अहिसक होगा । आज जैनघधम का जो कुछ स्वरूप उपलब्ध है, वह महावीर की देशना में अनुप्राणित है। आज उहीका धमशासन चल रहा है। महावीर दशन और धम के समन्वयकार थे । ज्ञान, दशन एवं आचरण का समन्वय ही मनुष्य को दु ख-मुक्ति की ओर ले जाता है। ज्ञानहीन कम और कमहीन ज्ञान--दोना व्यय है । ज्ञात सत्य का आचरण और आचरित सत्य वा चान--दोनों एक साथ होकर ही साथक होते ह । वस्तु स्वमाय धमे जैन-दशन की यह देन वडी महत्त्वपूण है कि वस्तु का स्वभाव ही धम दै-वत्थु सटावो धम्मो । सृष्टि का प्रत्येव पदाथ अपने स्वमावानुसार प्रवतमान है । उमवा अस्तित्व उत्पत्ति, स्थिति और विनाश से युवत है । पदाथ अपन स्वभाव से च्यूत नही होता--बह जड हो या चेतन । सत्ता के रूप में वह सदेव रिथत हं, पर्याय की अपेक्षा वह मिर्तर परिवतनशील হী ह! दमी त्रिपदी पर सम्पूण जँनदर्दन का प्रासाद खडा हं। इसी चिपदी ने आघार प्रर सम्पण छोक-व्यवस्था का प्रतिपादन जँन-ददान নদী নিহীঘলা ই। पड्दवव्यो वी न्थिति से स्पष्ट कि यह्‌ रोष अनादि अनन्त है, इसका वता-घर्ता या निर्माता कोई व्यमित-विभेप या ~ पद्रहु ~




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now