समता - स्वाध्याय स्वतन संग्रह | Samata-swadhyay Svatan Sangrah

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Samata-swadhyay Svatan Sangrah by सज्जनसिंह मेहता - Sajjansingh Mehta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ३०० ३०१ ३०३ ३०४ ३०५ ३०६ ३०७ ইগল ३०६ ३१० ३११ ३१२ ३१३ ३१४ ३१५ ३१६ ३१७ ३१८ ^ টি রি 9 कषः बं 9 ॐ ॥ है है ० 0 (022 4 छ ছি ^< - ० < ~~ ~ (श्र| (ट) सांचो वीर प्रभु सत्संग में नित प्राया करो सम्यग्‌ दर्शन संवत्सरी हे प्रभ श्रानन्द दता हिये राणी पद्मावती {भ्रालोयणा) हम भूल गये हैं जिनको हा, भ्राज संवत्सरी श्रायी होते-होते हैं साधु ऐसे ` होवे धर्म प्रचार | श्रौ श्रादि जिनन्द श्री जिनेश्वर देव की दद्‌ भक्ति श्री ऋषभ अजित श्री जिनवर मुझ करो कल्याण . श्री महावीर स्वामी की सदा जय हो श्री महावीर भगवान श्री अभिनन्दननाथ स्तवन श्री जिन मुभने पार उतारो श्रावक रत्न बनने कौ भावना ` विविंध सप्त कुव्यसन आवक के तीन मनोरथ `: ` चौदह नियम वन्दन सत्र श्रन्दर की छवि प्रार्थना ताना गुरु तुम शान हो अब मेरो समकित सावन आयो नाना पूज्यवर के गुण भावे श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी गुरु वन्दना ९६५ १६६ १९६ १६७ १६७ १६८ २०० २०१ २०१ २०२ २०२ २०३ २०३ २०४ २००५ २०५ २०६ २०६ २०७ २१० २११ २११ २२७ २२८ ररत | र्ठ २२९ কু २३० 35




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