साहित्य का समाज शास्त्र मान्यता और स्थापना | Sahitya Ka Samaj Shastra Manyata Aur Sthapana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जी भार पूज्यवर प्रो थी राजारासजो शास्त्री की प्रेरणा ही इसकी रचना है । उन्होंने ही इस बात के लिए बराबर प्रेरित किया । जब मैंने यह कार्य आरम्भ किया तो बराबर ही. उनको कृपा-छाया मेरे ऊपर बनी रही । पुस्तक की मूमिका लिख कर उन्होंने मुझे जो आार्कबाद दिया उससे इसकी यु रुता से सहुज बृद्धि हुई है । कंसे मैं उनका आभार प्रदर्शित करूत ? यह स्वीकार करते हुए शुभ बड़ा संतोष मिलता है कि पुस्तक में वैज्ञानिक दृष्टि का जो कुछ सी पट है बहू आदरणीय डा० हुरिएचन्द्र जी श्री- वास्तव की कुपा से है । समाजशास्त्र के हर क्षेत्र में अपनी पेनी हृष्टि डालकर समस्‍यायें खोज निकालने का उनका जो गुण हैं उसने पुस्तक को भी विशेषित किया हैं । पुस्तक का अधिकांश उन्होंने स्वयम्‌ पढ़ है और आवश्यक स्थलों पर दिल्ञा-निर्देश किया है । उनकी इच्च अनुकम्पा के लिए सदा कृतज् हुं । पूज्य डा० नायक के सम्पर्क में जब से मैं आया उनकी कप और संरक्षण अनायास ही मिलता रहा इसे मैं अपना गौरव समझता हूँ कि उन्होंने पुस्तक के लिए आशीर्वाद देकर सु ऊंचा उठाया है । पं० सीतारास जी चतुर्वेदी का आशोरबदि थी मेरे लिए एक सम्बल सिद्ध हुआ । पुस्तक में नाट्य चर्चा के अंश पर उनका जो दिशा-निर्देश मुझे समय संमय पर मिलता रहा वह बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ । उनकी इस कृपा के लिए बाभारी हूं अपने प्रिय मित्र शी घना से गुत्त की सिताई का सहज ही ध्यान था जाता है जो बराबर पूछते रहे कितना काम किया लाओं देखा जाय । इसका अर्थ कि उनके ही उकसाव व दबाव से मैं अपना कार्य तिल-तिल बढ़ाता रहा अन्यथा अभी पुस्तक में कितने ही चार वर्ष लग जाते । हे




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