वर्णी - वाणी भाग - 2 | Varni Vani Bhag-2

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Varni Vani Bhag-2 by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १५ ] वर्षसे ही सेठ सा०से हुआ है। इस समय अपने वृहत्‌ कटवमे ये ही प्रधान पुरुष हैं। दृ्ष है कि इनके धार्मिक जीचन का লাল इनके सारे कुटुंब पर पढ़ा है। घरका अत्येक सदस्य बालक, जचान; खी, पुरुष सभी प्राणी अत्यंत सज्जन, धर्मात्मा, दया, श्रमिक एवं परोपकारी हैं । इस समय इनके कारखानेमें पचासो आदमी काम करते हैं लेकिन उनमेंसे आप किसी नौकरसे यह कहकर देख लीजिये कि सेठजीसे १०) माह ज्यादा देंगे, आप हमारे यहाँ काम पर आजाइए, तो वह जो उत्तर देगा उससे ही आप सेठ सा०के व्यवद्दार को समम लेंगे । सेठ सा० अपने छोटेसे नोकर को नी जपने छदटु- म्वियोंके समान ससमते हैं. और समय पड़नेपर वे अपने अधीनस्थ मनुष्यों की पूरी २ सद्दायता करते हैं। इनके व्यवद्दास्से सभी व्यक्ति प्रसन्न हैं। , जनताके लाभाथे सागर शहरमें कई वर्षोंसे इनकी भोरसे एक विशाल आयुर्वेदिक ओऔपघालय श्री वैराज पं० मगवान- दासजी आयुर्वेदाचाये की अध्यक्षतामें चलाया जा रहा है। इसमें प्रतिदिन উন্ধভী रोगी लाम लेते हैं । इस वर्ष इन्होने एक दूसरी टंकी बनवाई है और उसमें भी टोंटियाँ क्नगवाकर तथा जल भरा- कर जनताके जलन कष्टको निवारण किया है। गर्मीके दिनोंमें सागरमें पानीका बहुत कष्ट रहता है, इसलिये सेठ सा० प्रतिवे इन टकियों को भरवाकर जनताकी सारी सेवा करते हैं । आस-पासके तीर्थक्षेत्रों एव सस्था्ओकी भी आप समय-समय पर हजारों रुपर्योका दान दिया करते दँ । अभी गत वर्ष ही इन्होंने करीब ८०००) रुपयोंका दान मेरे द्वारा क्षेत्रों और सत्याओंको दिया है। श्री निसईजी क्षेत्रषपपः इनकी ओरसे एक विशाल मन्दिर बनवाया जा रहा है और লহ হী दी पृण




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