संसार और धर्म | Sansar Aur Dharam

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Book Image : संसार और धर्म  - Sansar Aur Dharam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परंपराक्य अनगार-मार्य और संन्यास परंपराका वर्ण-कर्म-धर्म-संस्यास- पार्ष अस्तित्वमें आया | परन्तु जिस विचारमें जो दोष था, वह पौरे धीरे ही सामूदिक जीवनी निरवरुता भौर छापरवाहीके रास्तेसे प्रकट हुआ ) जो अनगार होते है था वर्ण-कर्मेनधर्म छोडते हैं, भुर्हें भी जीना होता है। जिसका फल यह हुआ कि अँसोका जीवन अधिक माताओं परावछवी और कृर्थिम वनां । सामूहिक जीवतकी कड़िया डूटने और अस्तव्यस्त होने छगी । जिस अनुभवे यहं सुझाया कि कैवल वर्म बंधन नहीं है; परन्तु भुसके पीछे रही हुओ तृप्णावृत्ति गा दृष्टिकों संकुचितठा ओर चित्तकी अशुद्धि हो बंघनरूप है। केवल वदी दुः देती ६ । यही अनुभव अनासबत कर्मवादके द्वारा प्रतिपादित हुमा है। अिस पुस्तकके लेखकोने अिसमें संशोधन करके कर्मशुद्धिका बुत्तरोत्तर प्रकर्ष छापने पर ही भार दिया है, और अुसीमें मुक्तिका अनुभव करनेका अर्होंने प्रतिपादन किया है। पाँवमें सूओ लग जाने पर कोओ अुसे विकाल कर फ्रेंक दे तो आम तौर पर कोजी मुसे गरत नहीं बहता। परन्तु जब सूओ फेंकनेवाल्ा बादमें सीनेके और दूसरे कामके लिओ न सूओ दूढें और अुसके न मिलने पर अधीर होकर दुःखका यनुद करे, तो समझदार आदमी अुसे जरूर कहैगा कि तूने भूछ की। पांवमें से मूओ निकालना ठीक था, क्योकि वह भुसकों योग्य जगह नहीं थी। परन्तु यदि अुसके बिता जीवन चलता हो स हो तो भुसे फेंक देलेमें जरूर भूल है। ठीक तरहसे भुपयोग करनेके लिओे योग्य रीतिसे असका संग्रह करना ही पामे से सूजी निकालनेका सच्चा अर्थं है1 जो न्याय सूजीके लिजे है, वहीं न्याय सामूहिक कर्मके लिे भी है। केवल वैयक्तिक दृष्टिसि जीवन जीता सामूहिक जीवनकी दृष्टिमें सूओऔ भोंकलेके बराबर है। जिस सूजीको निकाझकर জুন ठीक तरहसे भुए्योग करनेका मतकूव है सामूहिक जीवनकी जिम्मे- दादसीकौ बुद्पूवक स्वीकार करके जीवन विताना \ अख जीवन ही व्यवितकी जीवन्मृक्ति है । जैसे जैसे हर व्यक्ति अपनी वासता-शुद्धि डरा सामूहिक जीवनका मै कप करता जाता है, बैसे दैसे सापूहिक जीवन दुःखमुक्तिका विशेष अनुभव करता है। जिस प्रकार विचार ष




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