जीवन - यज्ञ | Jeevan Yagy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन का तक्य १४ जीवन के उस सामान्य लक्ष्य की ध्रोर प्रभावित होना चाहिए जिसकी चचां ऊपर की गई है । जीवन की गहराई में किसी बिन्दु पर किसी तल पर दोनों लघच्यों को मिलना दोगा । जैसे परिधि केन्द्रविन्दु से दूर दिखाने पर भी उससे झमिन्न है उसी का विस्तार है तैसे ही मानव का निजी विशिष्ट लय सामान्य लक्य--निरतिशय झ्रानन्द सत्य प्रकाश श्रौर झमृत की साधना --के प्रति उन्मुख दोना चाहिए । तभी शाप में शक्ति का झधिष्ठान होगा तभी शाप में विद्यूत्ते की धारा प्रवाहित होगी | झापके सामने जीवन का सामान्य श्ौर विशिष्ट लक्ष्य स्पष्ट इना चाहिए | श्रधिकांश व्यक्ति सामान्य लच्च्य तो भुल्न ही गये हैं पर उन्होंने श्रपना कोई विशिष्ट लच्च्य भी नहीं बनाया है। स्कूल या कालेज में पढ़ने वाले छात्र प्राय श्रपना को विशिष्ट लद्य निर्धारित किये बिना ही पढ़तें जाते हैं । उनमें जीवन-नि्माण का कीई सकल्प नहीं दोता जीवन में वे चास या संयोग पर निर्भर करते हैं । विन्वारक बिनोबा ने एक स्थान पर इस मनोवुत्ति का बहुत सुन्दर चित्र इस प्रकार दिया है-- मैट्रिक के एक बिधार्थी से पूछा-- क्यों जी तुम श्रागे क्‍या करोगे गे क्या झागे कालेज ज्वाइन करूंगा ठीक है कालेज में तो जाओगे । लेकिन उसके बाद ? यह सबाल तो बना ही रहता है । सवाल तो बना रदवा है । पर उसका श्रामी से विचार क्यों किया जाय १ श्रागे देखा जायेगा भाद को तीसरे साल उसी विद्यार्थी से बद्ी सवाल पूछा । अभी तक कोई विचार महदीं हुआ । विश्वार हुआ नहीं सद्दी पर विचार किया था क्या नहीं साइब विचार किया ही नहीं । क्या विचार करें कुछ सूसता




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