मानवजाति मानव वैज्ञानिक विवेचन | Manavjati Manav Vaigyaanik Vivechan

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Manavjati Manav Vaigyaanik Vivechan  by नरेश वेदी - Naresh Vedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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তরী हुई नहीं होतीं, जैसा! कि कई यूरोपाशों सें होता है, तो वे संकरा चेहरा बनाती हूँ, जो भागे को झोर निकला हुआ होता है। जब चेहरे फा एक तरफ़ से श्रध्ययन किया जाता है, तव इस बात की श्रोर ध्यान दिया जाता है कि मध्यम श्रयवा লালা সইহা श्रौर जबड़े किस सोपा तकं श्राय की জীব निकले हए हं \ चिदुक का बाहर कौ ओर निकला हीना भवल > भष्यम श्रवा साधारण हो सक्ता है। न्ेत्रों को श्राकृति ( चित्र १) ऊपरी पलक पर बली को श्राकृति और धाकार पर, कभी-कभी निचले पलक्क पर भो, और झांख जिस सोमा तक खुलतो है, उस पर निर्भर करती है । श्पनी बारी, में पूरो तरह से खुली हुईं श्रांख क ग्राकृति इस बात पर भिर्भेर करती है कि त्वचा किस प्रकार वलित होती हैं भ्रौर पलकों का निर्माण करनेवाले ऊतक को मोटाई कितनी है। नाक को झाकृति मुख्यतः नाक के सेतु फो ऊंचाई, बांसे के रूप, नासाधार पर नथनौं को चौडा श्वर नासादारों कै दीं श्रक्षो की दिश्ण हारा निर्धारित होती है (चित्र २)। চি পক 3 ২৬২ ৮ (২১, % (दस # উই লি चित्र २ . नासाधार की आकृति और নালাজাী ঈ दीधे श्रक्षों की दिशाओं में विभिन्नता (वीचे से देखने पर) होंढों को तोब भागों में विभाजित किया जाता है-त्वचीय, श्रतवेता আত श्लेष्पल \ प्रजातीय लक्षणय फो दृष्टि से इनमे सबसे दिलचस्प शतवत भाग है, जो झाम तौर पर होंठ हो कहलाता है! सपनवविज्ञावी होंठों को चार चर्मों- पतले, मध्यम , मोटे श्नौर बहुत मोदे-में वर्गोकुत करते हैं (चित्र ३)। षदे




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