एकीभावस्तोत्र | Ekibhavastotra

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Book Image : एकीभावस्तोत्र  - Ekibhavastotra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कऋायाय बादिराज ओर उनकों रखनाएँ. [8] ओर भक्तिरसरुप-माचुयंले ओत-प्रोत है। स्तोत्र को संस्कृत म॒दु, सरल ओर पद लालित्य को लिये हुए है। इल स्तबन का एक पद्य श्लेषात्मक और दृच्यथंक भी है। इसके कई पद्य बड़े अच्छे हैं जिनमें बड़ी खबी के साथ कविने अपने भावों कां चित्रण किया है। और जैनधमंकी मोन्यताके श्रनुघार खच्चे देवके स्वरूपका अच्छी तरद्द से प्रतिपादन किया है। इस स्तोत्र की खास विशेषता यह है कि इस में अन्य आदि- नाथ (भक्तामर) 'पाश्वनाथ! (वरथाणमगतदर) आंदि स्तवन की तरह किसो एक तोथ कर विशेष की स्तुति नही' को हे किन्तु यह सामान्य स्तुतिप्रन्थहै। दि० ज्ञेन समाज में इसके पठन-पाठन को बहुत प्रचार है। स्तोत्र को एक धार पढ़ कर फिर छोड़ने को जी नही चाहता । पाठकों की ज्ञानकारों के लिये उस्ना पङ पद्य नमूने तोर पर नीचे व्या जाता हैः- मिथ्यावादः मलमपनुदन्छप्तभगी तरङ्को - बांगाम्भोचि भुवनमखिल॑ देव पदति यस्ते ! तस्याङृत्ति सपदि बिबुधाश्चेत सैवाचलेन, व्यातन्वन्त, सुचिरममृतासेवाय्रा वृप्नुवन्ति ॥१८। श्र्थात्‌ हे नाथ | श्रस्त शरोर नास्तिश्राद्‌ सप्तमंगङूप तरागोंले श्रथवा अनेकान्तके माहात्म्यले-शरीरादिक बाहा पदर्था में आत्मत्य बुद्धिक्षप जीवके बिपरोताभिनिवेशको दूर करने वाले आपके बच॑तलप्लुद्र को जो भव्य जीव निरन्तर अभ्याल मनन एवं परिशीलन करता है-- श्रागमोक्त विधि से अभ्यास कर चित्तकों निश्चलता तथा दया-दुम-त्याग और समाधि की परांकाष्ठा को--चरम सीमा को--प्राप्त करता है चह शोध दी मोक्ष को प्रात कर लेता है और चहां श्रम्यावाधं आत्मोत्यथ अनन्त खुख में मझ्न रहता है। यद सब आप के बचन समुद्र का दी मादात्म्य एवं प्रभाव है| कदा जाता दे कि इस




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