बालगीता | Balgeeta
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अध्याय | ७
उन शंखो कं चलने से सारा भाक्षाश भज उठा । पाण्डवं ने
ऐसे ज्ञोर से शंख बजाये जिनके भीमनाद को सुनकर कौरवों
की छातों दइल गई।
, कौरवें को लड़ाई के लिए तैयार खड़े देखकर भ्रजजुन ने भी
अपने अख्-शख सेंभाले। सब ठीक-ठाक दो जाने पर उसने
श्रीकृष्ण से ऋद्दा कि तुम मेरा रघ दोनों सेनाओ्रों फे चीच में ले चलो।
में व्हा चलकर देखें ते कि कान याद्धा मुझसे लड़ाई करने
लायक है; किसके साथ में युद्ध करूँ। में चलकर देख ते लूँ कि
दुर्बृद्धि दुर्योधन की ओर से कीन-कैन शूरवीर लड़ाई के लिए
आये हैं । ।
ह सुन, श्रोकृप्णचन्द्र ने अ्रजुन का रथ दोनों सेनाओं के
बीच में वहाँ ज्ञा खड़ा किया जहाँ भीष्मजी ओर द्रोषाचाय्ये आदि
হাহেলীব युद्ध के- लिए तैयार खड़े थे |
दोनां सेनाओं के बीच में पहुँचकर अजुन ने अपने चाचा,
दादा, गुरु, मामा, भाई, भतीजे, पोते, मित्र, ससुर आर साथी
आदि की वहाँ खड़े देखा। झपने भाईवन्दों का खड़ा देखकर दया से
अर्जुन का जी भर गया । वद्द वढ़ा दुखी होकर कहने लगा कि हे
कृष्ण; युद्ध में आये हुए इन भाईबन्दों का देखकर मेरे सब अड्ड
गिरे से पड़ते हैं, मुख सूखा जाता है; सारा शरीर काँपता है
शरीर रोमाथ्व हो रहा है। मेरे हाथ से मेरा गाण्डीव घतुप छूटा
पड़ता है । मेरे सारे शरीर में जलन सी द्वो रही है । में यहाँ खड़े
होने का भी समर्थ नहीं। मेरा सन चलायमान हे रहा है। हे
कृष्ण, मुझे इस समय बुरे-बुरे शकुन दिखाई दे रददे हैं | इस युद्ध
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