ज्ञान - गोष्ठी | Gyan - Goshthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञानगोष्ठी ] [ १४ प्रयोजन से “ज्ञानी श्रावक की श्रन्तर्वाह् दशा' से सम्बन्धित प्रइनोत्तर दिए हैं । इसप्रकार मोक्षमार्ग से सम्बन्धित श्राध्यात्मिक विपयो के बाद तत्त्वनिर्णय हेतु जिनागम से बहुर्चाचत सेद्धान्तिक विषयों के आधार पर दसवे से सत्तरहवे श्रध्याय मे क्रमशः 'द्रव्य-गुण-पर्याय, निमित्त-उपादान, निइ्चय-व्यवहार, प्रमाण-नय, कर्त्ता-कर्म, क्रमबद्धपर्याय एवं पुण्य-पाप' -- इन विषयों का समावेश किया गया है । (२) विषय-विभाजन का श्राघार *- किस प्रइन को किस विषय के भ्रन्तगंत लिया जाए - यह निर्णय करने मे सबसे बडी कठिनाई यह थी कि एक ही प्रइन श्रनेक विषयों से सम्बन्धित मालूम पडते थे । ऐसे प्रइनो का विषय-निर्घारण उनके सन्दर्भ के श्राधार पर किया गया है, जैसे - प्रश्नक्रमाक १२२ सम्यग्ददन या मेद-विज्ञान के श्रघ्याय मे भी रखा जा सकता था, परन्तु श्रात्मानुयूति के प्रयत्न के सन्दभे मे पूछा गया होने से उसे श्रात्मानुभूति के श्रघ्याय मे रखा गया है । (३) प्रश्तो के क्रम-निर्धारण का श्राघार :- यद्यपि प्रत्येक अ्रष्य गय मे सकलित श्रधिकाश प्ररन गे-पीछें के प्ररनो से सम्बन्धित नही है, तथापि कई प्रदन लगातार परस्पर सम्बन्धित है, श्रत उन्हे क्रम मे रखा गया है । श्रघ्याय के प्रारम्भ मे सरल एव विषय को श्रधघिकतमस स्पष्ट करनेवाले प्रश्न रखे गये हैं । (४) क्रमाँक-पद्धति :- प्रत्येक प्रदन के ऊपर दिये गये क्रमाँक का क्रम श्रादि से लेकर श्रन्त तक कायम रहा हैं, इससे यह पता चलता है कि पुरी पुस्तक में कितने प्रदनोत्तर हैं । तथा प्रदन के श्रन्त मे दिया गया क्रमाँक मात्र सम्बन्धित श्रध्याय का क्रमाँक है, इससे प्रत्येक श्रध्याय के कुल प्रश्नोत्तरो की संख्या का पता चलता है । (४) प्रमासा-पद्धति :- प्रत्येक प्रदन के अन्त मे उस प्रइन का प्रमाण भी दिया गया है कि वह किसमे, किस वर्ष के किस माह मे, किस पृष्ठ से लिया गया है, ताकि इन प्ररनो की प्रामाणिकता श्सन्दिग्घ रहे । प्रत्येक श्रध्याय के श्रन्त मे उस विषय से सम्बन्धित भजन या उद्धरण दिए गए हैं। जेसे कारणशुद्धपर्याय के प्रकरण के श्रन्त मे नियमसार के उस प्रकरण को उदुघृत किया है, जिसमे कारणशुद्धर्याय की चर्चा की गई है ।




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