तत्त्व - चिन्तामणि | Tatva Chintamani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.42 MB
कुल पष्ठ :
408
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्ञानीकी अनिर्वचनीय स्थिति ७
अकाशं च श्रदृूत्तिं च मोहमेव च पाण्डव ।
न देष्टि संप्रदत्तानि न निश्चत्तानि का्ाति ।!
(१४०२)
. इसीके आगे २३ । २४ और रण शोकोंमें भी गुणातीतके
क्षण बतलाये गये हैं । उपर्युक्त २२वें 'छोकके “प्रकाश” दाब्दसे
खअन्तःकरण और इन्द्रियोगे उजियाला, प्रदृत्तिसे चेप्टा और मोहसे
निद्रा आलस्य ( प्रमाद, या अज्ञान नहीं ) अथवा ससारके ज्ञानमें
सुषुप्तिवत्त् अवस्था समझनी चाहिये । अन्तःकरणमें क्रोई “धमी' न
रहनेके कारण 'द्वे” और आकाड्डा तो किसको हो * रागढेष और
ह्ष-गोकादि न होनेके कारण यह सिद्ध होता है कि उसमें कोई
“घर्मी' नहीं है । यदि जड़ अन्तःकरणके साथ सम्टि-चेतनकी
छिसता होती तो जड अन्तःकरणमे रागद्देषादि विकारोका होना संभव
होता । परन्तु समष्टि-चेतनका सम्बन्ध अन्त:करणसे नहीं रददता,
केवल उसकी सत्ता-स्पूर्तिसे चेष्टा होती है। ये सब लक्षण भी वहीं-
तक हैं जहातक ससारका चित्र है और ये साधकके लिये
खआदर्ज उपायस्वरूप हैं, इसीलिये शास्रोंमे इनका उल्छेख है ।
गुणातीतकी वास्तविक अवस्थाको कोई दूसरा न तो जान
सकता है और न बतला ही सकता है, वह खसंबेय स्थिति है ।
'परन्तु यदि कोई इसप्रकार परीक्षा करे कि मुझमे ज्ञानीके लक्षण
हैं या नहीं * तो जानना चाहिये कि इसे ज्ञान नहीं है, ठक्षणोकी
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