तत्त्व चिंतामणि भाग 1 | Tatva Chintamani Bhag-1

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Tatva Chintamani Bhag-1 by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ञाचीकी जविवंचनीय स्थिति श्शु बाद “्साक्षात्कार' होता है, इसीको मुक्ति कहते हैं । फोई जैन आदि. मतावल्म्बी छोग तो सृत्युके बाद मुक्ति मानते हैं, परन्तु इमारे वेदान्तके सिद्धान्तमें जीवन्सुक्ति भी मानी गयी है, गृत्युके पहले भी ज्ञान हो सकता है । इस अवस्थामें उसका शरीर तथा। शरीरके द्वारा होनेवाल़े कर्म केवल छोगोंको देखनेमात्रके लिये रद. जाते हैं । उसमें कोई “धर्म” नहीं रहता । यदि कोई कट्दे कि जब उसमें चेतन ही नददीं रहा तो फिर क्रिया क्योंकर होती है * इसके उत्तरमें कहा जाता है. कि सम्टिन्वेतन तो कहीं नददीं गया; व्यष्टि-मावसे इटकर उसकी स्थिति झुद्ध चेतनमें हो गयी । समष्टि- चेतनकी सत्ता-रुपूतिंसे क्रिया हुआ करती है, इसमें कोई बाधा नहीं पड़ती । इसपर यदि कोई फिर यह्द कहे कि चेतन तो जड़ पदार्थ और मुर्देमे भी है, उनमें क्रिया क्यों नहीं छोती * इसका उत्तर यह है कि उनमें क्रिया न होनेका कारण भन्तःकरणका अमाव है, यदि योगीजन एक चित्तकी अनेक कल्पना करके मुर्दे या जड़ पदार्थमें चित्तका प्रवेश करवा दें तो उसमें भी क्रियार्जोका होना सम्भव है. । कोई पूछे कि ज्ञानी कौन है * तो इसके उत्तरमें कुछ भी नहीं कहा जा सकता । यदि दरीरको ज्ञानी कहा जाय तो जड़ शरीरका ज्ञानी होना सम्भव नहीं; यदि जीवको ज्ञानी कहें तो ज्ञानोत्तरकालम उस चेतनकी “जीव” सज्ञा नह्दीं रहती और यदि झुद्धः चेतनंको ज्ञानी कंहें तो झुद्ध चेतन तो कभी अज्ञानी हुआ ही नद्दीं |- इसलिये यह नद्दीं बतढाया जा सकता कि ज्ञानी कौन है




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