तत्त्व - चिन्तामणि | Tatva Chintamani

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Tatva Chintamani by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञानीकी अनिर्वचनीय स्थिति ७ अकाशं च श्रदृूत्तिं च मोहमेव च पाण्डव । न देष्टि संप्रदत्तानि न निश्चत्तानि का्ाति ।! (१४०२) . इसीके आगे २३ । २४ और रण शोकोंमें भी गुणातीतके क्षण बतलाये गये हैं । उपर्युक्त २२वें 'छोकके “प्रकाश” दाब्दसे खअन्तःकरण और इन्द्रियोगे उजियाला, प्रदृत्तिसे चेप्टा और मोहसे निद्रा आलस्य ( प्रमाद, या अज्ञान नहीं ) अथवा ससारके ज्ञानमें सुषुप्तिवत्त्‌ अवस्था समझनी चाहिये । अन्तःकरणमें क्रोई “धमी' न रहनेके कारण 'द्वे” और आकाड्डा तो किसको हो * रागढेष और ह्ष-गोकादि न होनेके कारण यह सिद्ध होता है कि उसमें कोई “घर्मी' नहीं है । यदि जड़ अन्तःकरणके साथ सम्टि-चेतनकी छिसता होती तो जड अन्तःकरणमे रागद्देषादि विकारोका होना संभव होता । परन्तु समष्टि-चेतनका सम्बन्ध अन्त:करणसे नहीं रददता, केवल उसकी सत्ता-स्पूर्तिसे चेष्टा होती है। ये सब लक्षण भी वहीं- तक हैं जहातक ससारका चित्र है और ये साधकके लिये खआदर्ज उपायस्वरूप हैं, इसीलिये शास्रोंमे इनका उल्छेख है । गुणातीतकी वास्तविक अवस्थाको कोई दूसरा न तो जान सकता है और न बतला ही सकता है, वह खसंबेय स्थिति है । 'परन्तु यदि कोई इसप्रकार परीक्षा करे कि मुझमे ज्ञानीके लक्षण हैं या नहीं * तो जानना चाहिये कि इसे ज्ञान नहीं है, ठक्षणोकी




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