उत्तर कथा खंड - १ | Uttar Katha Khand - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
520
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| उत्तसकथर | २१
बरात को गोधूली के पूर्व ही वधू के 'आवाह-द्वार' लगना हैँ । गोरज के लग्न है ।
झौर भव गाँव रह ही कितना गया है ? वो 55 नदी पेले पार का गाम-गोयरे वाला
कैवड़ा~स्वामी का वन दिखायी दे रहा ह । पीपल पर हनुमान जौ की लाल भन्डी जी
दिखलायो दे रहो हैँ न, वही तो गांव है ।
>मरें, मर्रे, डोबा !! डोवा !!
গীত गाडीवान की इस ठिटकार पर भाग डालते दमनी के बैल पैर के ठुमके
और आर चुभाये जाने पर शेप यात्रा पर पुनः दौडते का उपक्रम करने लगते है। घोड़े
को भी याँव की न्ध श्राने लगी थी तभी तो चह हिनहिनाया। याँव की सदी का
उत्तार श्रा गया था| खाल जैसी नदी में नाम मात्र को हो जल था। दममी भर्रा कर
नदी के पेटे में धेंस गयी । बालू ने किचाकिचाकर पहियों को थाम लिया तथा जल की
स्फटिकता ने वैलो की थूंथों को ।
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