ज्योत्स्ना | Jyotisha

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Jyotisha by आचार्य शिवपूजन सहाय - Acharya Shiv Pujan Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झंक १ दृश्य २ लिया । यहाँ के चंद झादमी भी झब इसकी राय में रदते हैं उन्हे मिलाकर मुझे दी कष्ट में डालना चाददता दै। मैं भी नोन-सत्तू बाँधकर इसके पोछे पड़ गया हैँ। देखूंगा इस साल बच्चू केसे श्नन घर ले जाते हैं । सैरवगिरि-झापके विचार सवा सोलह श्राने ठीक हैं। वीरेन्द्र बड़ा पाजी है। उद्योग और झध्यवसाय का तो मानों श्रवतार दी है। जेठ की घघकती दुपदरी भादो की झँघेरी रात पूस-माघ की कड़ी सर्दी की उसे तनिक परवा नहीं । जहाँ उसका प्रवेश हुआ कि हाथ-पाँच फैलाना शुरू करता है । नीति में श्र भी कुशल है । सभी फो किसी-न-किसी उपाय छे झपने वश में कर लेता है । तभी तो श्राप-जैसे ज्ोरा० वर घादमी को चद छुछ नहीं समभ रदा दै। यह सुनकर कि उसने आपको खताने फे लिये क्र कस ली है मेरी देह में छ्याग लग गई है । बस श्ञापकी ब्याज्ञा की देर है। संकेत पाते दी हमलोग उसे इस गाँव से बैसे ही निकाल देंगे जैसे मतवाला भेंसा निबंत्र भेंसे को खदेड़ देता है । न्तना-- अचानक घ्राकर सरकार खत्ताय । इकबाल०--मर्त रहो । कद्दो छवा समाचार दे ?




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