देवयानी | Devyani
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्प
है, उसका पतन भी उतना ही निकट है।
ब्रह्मचारी कच की सेद्धान्तिक बात ने शर्मिष्ठा का मुख बंद कर
दिया । वह मौन हो गई ।
तभी हड़वड़ाकर देवयानी बोली, “ब्रह्मचारी कंच, हमसे बड़ी भूल
हुई । हम बातों में ऐसे संलग्न हो गए कि तुम्हारी भूख का हमें ध्यान
ही विस्मरण हो गया। चलिए, अब आश्रम को चलें । पिताजी मेरी
प्रतीक्षा में होंगे ।
तीनों प्राणी उद्यान से ग्राश्नम की. शोर चल पड़े मागं में राज-पथ
आ जाने पर श्मिष्ठा ठहर गई । उसे दोनों ने विदा किया तो शर्भिष्ठा
हाथ जोड़कर बोली, “ब्रह्मचारी कच, श्रनजाने मे कोई मूभसे त्रुटि बन
पडीहोतो क्षमा करना ।''
यहु सुनकर ब्रह्मचारी कच मुस्कराकर बोला, “राज-कन्या से कभी
कोई त्रुटि नहीं हो सकती । उसकी त्रुटि में भी किसी शुभ कार्य का ही
संदेश रहता है।
ब्रह्माचारी कच की बात सुनकर तीनों के मूखे-मंडल खिल उठे ।
दामिष्ठा भ्रपने महल कौ श्रोर चल दी। ब्रह्मचारी कच तथा देवयानी ते
आश्रम की दिशा में प्रस्थान किया ।
পপ २ ০
आश्रम में पहुँचकर देवयानी पहले ब्रह्मचारी कच को आश्रम की
अतिथिशाला में ले गई । उसे एक कुटिया में ठहराया और मधुर कंठ से
बोली, “तुम तनिक विश्वाम करो ब्रह्मचारी ! तब तक मैं तुम्हारे लिए
भोजन का प्रबन्ध करती हूँ ।
ब्रह्मचारी कच बोला, “आचाय॑-कन्ये देवयानी ! यहाँ श्राकर तो न
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