देवयानी | Devyani

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Devyani by यज्ञदत्त शर्मा - Yagyadat Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्प है, उसका पतन भी उतना ही निकट है। ब्रह्मचारी कच की सेद्धान्तिक बात ने शर्मिष्ठा का मुख बंद कर दिया । वह मौन हो गई । तभी हड़वड़ाकर देवयानी बोली, “ब्रह्मचारी कंच, हमसे बड़ी भूल हुई । हम बातों में ऐसे संलग्न हो गए कि तुम्हारी भूख का हमें ध्यान ही विस्मरण हो गया। चलिए, अब आश्रम को चलें । पिताजी मेरी प्रतीक्षा में होंगे । तीनों प्राणी उद्यान से ग्राश्नम की. शोर चल पड़े मागं में राज-पथ आ जाने पर श्मिष्ठा ठहर गई । उसे दोनों ने विदा किया तो शर्भिष्ठा हाथ जोड़कर बोली, “ब्रह्मचारी कच, श्रनजाने मे कोई मूभसे त्रुटि बन पडीहोतो क्षमा करना ।'' यहु सुनकर ब्रह्मचारी कच मुस्कराकर बोला, “राज-कन्या से कभी कोई त्रुटि नहीं हो सकती । उसकी त्रुटि में भी किसी शुभ कार्य का ही संदेश रहता है। ब्रह्माचारी कच की बात सुनकर तीनों के मूखे-मंडल खिल उठे । दामिष्ठा भ्रपने महल कौ श्रोर चल दी। ब्रह्मचारी कच तथा देवयानी ते आश्रम की दिशा में प्रस्थान किया । পপ २ ০ आश्रम में पहुँचकर देवयानी पहले ब्रह्मचारी कच को आश्रम की अतिथिशाला में ले गई । उसे एक कुटिया में ठहराया और मधुर कंठ से बोली, “तुम तनिक विश्वाम करो ब्रह्मचारी ! तब तक मैं तुम्हारे लिए भोजन का प्रबन्ध करती हूँ । ब्रह्मचारी कच बोला, “आचाय॑-कन्ये देवयानी ! यहाँ श्राकर तो न




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