मनुष्य की भावनाएं | Manushya Ki Bhavnaayen

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Book Image : मनुष्य की भावनाएं  - Manushya Ki Bhavnaayen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्याय १३ न्याय दही ने दुष्टों केः पराजित किया-है ओर इसी ने दुरे कार्य्यो को आगे बढने से रोका है। न्याय ही मलुष्य-का इस जगत में उद श्य होना चाहिये यह किस तरह हुआ ९ मनुष्य की आत्मा अप्राकृतिक वस्तु भी प्राप्त कर सकती -हे । यह न्याय. ही के-कारण्‌ दै, जिसका कि मलुष्य के दिमाग में सदेव विचार होता ही रहता-है, कि हमारा -दिल अन्याय करने से सेकता. है। हमें-बहुघा-यह-शब्द-सुन पड़ते हैं “यह चाहे कानून ही क्‍यों न हो-परन्तु न्‍्याय- नहीं है ।” , सनुष्य बुरे कानूनों के स्थान में अच्छे-कानून/बनाते हैं-और न्याय यह नहीं कहता कि “अच्छा किया” परन्तु यह -कि -“और अच्छा करो”? न्याय हमारे कानूनो से कभी सन्तुष्ट नदी हो.सकता । यह मनुष्य की मानसिक शक्ति ही है, जो आगे आने वाली घटनाओं को सन्मुख रखते हुए क्षेत्र में पदापंण करती है। न्याय ही हमें बतलाता है कि हमारा ध्येय बहुत-ऊंचा है। न्याय के इस विचार के लिर ही मनुष्य का' निमोण हुआ है। भनुष्य की आत्मा एक निर्जीव देह पर अभ्रभाव डाज्कर एक अप्राकृतिक चस्तु तैयार कर देती है। नम्राय न्यायाधीश कीन्तस्वीर-से-भी.नदहीं प्रकट होता है । न्यायाधीश रंगीले वस्त्रौ से केवल कानून दी प्रकट होता है । न्यायाधीश का कर्तव्य केवल इतना ही है कि चह अपराधो को




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