आषाढ का एक दिन | Aashad Ka Ek Din
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.5 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झड्ू, १ श्फू
इसे तुम्हारे हाथ में सौप देंगे ।'*'मल्लिका, इसे श्रन्दर ले
जाकर तब्प पर या किसी आस्तरण पर ”'
[अस्विका सहसा श्न्दर से आती है ।]
अ्रसम्विका : इस घर के तत्प श्र शभ्रास्तरण हरिरणज्ञावकों के
लिए नहीं हैं ।
सल्लिका : तुम देख रही हो माँ *!
श्रम्बिका : हाँ, देख रही हैं । इसीलिए तो कह रही हूँ । तत्प
श्र आआस्तरण मचुष्यों के सोने के लिए है, के
लिए नहीं ।
कालिदास : इसे मुझे दे दो मल्लिका !
का भाजन नीचे रख देता है श्रौर बढ़कर हरिश-
छशावक को शभ्रपनी वाँहो में ले लेता है ।]
इसके लिए मेरी बाँहों का श्रास्तरण ही पर्याप्त होगा ।
में इसे घर ले जाऊँगा।
[वार की ओर चल देता है । दन्तुल तीक्ष्ण दृष्टि से
उसे देखता रहता है ।]
दन्तुल : श्र राजपुरुष दन्तुल तुम्हें ले जाते देखता रहेगा !
कालिदास : यह राजपुरुष की रुचि पर निभंर करता है ।
| बिना रुके या उसकी श्रोर देखे ख्योढ़ी मे चला जाता है।]
दन्तुल : राजपुरुष की रुचि-झरुचि वया होती है, सम्भवत: इस-
का परिचय तुम्हें देना श्रावश्यक होगा ।
[कालिदास वाहर चला जाता है । केवल उसका देंव्द
ही सुनाई देता हैं ।|
१- 'मास्तरणु--विछावन
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