पूज्य श्री जवाहर लाल जी महाराज के व्याख्यानों में से सेठ धन्ना जी | Pujya Shri Jawahar Lal Ji Maharaj Ki Vyakhyanon Seth Dhanna Ji
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ ह - कथारम्भं
कारण नहीं. है । बल्कि वह तुम्हारा छोटा भाई है,. इसलिए तुम्हें
उसकी प्रशंसा सुन कर और पअपतन्न'ः होना चाहिए.।' इसके-सिवा
मैं उसकों जो प्रशंसा करता हूँ वह झूठी भो नहों है.। फिर- हम्हें
बुरा ने का क्या कारण ९ |
पिता कां यह कथन सुन कर तीनों मायो की ओंखं चद् गड् '#
वे कहने रगे किं--हम तो सोचते थे कि हमारा कथन - सुन करे
आप भविष्यं में धन्ना की प्ररंस न करने! के लिए हमें विश्वास
दिछावेंगे, लेकिन आप तो ओर उसको प्रशंसा की पुष्टि कर रहे है!
आप उसको पुण्यात्मा ओर सद्भागो कहते है तो क्या हम तीनों
पापात्मा ओर टुमौगो ই ! |
' घनसार ने उत्तर दिया; कि--मैंने तुम छोगों को पाण़ात्मां
या दुभोगी तो कभी नहीं कहा ! मैंने तो:केवल उसकी प्रशंसा को
है ओर वहः भी उसका नार-विवार गाड़ते समय घन निकलने,
विद्या बुद्धि आदि पँ उसके निपुण होनेःओर उसकी सर्वेप्रियतां
के कारण । |
लड़कों ने कह्दा--बस, नार-विवार गाड़ते समय घन निकरे
के कारण ही आप उसको सद्भागोी कह कर उसकी प्रयासा ऋते
हैं! हमारी दृष्टि में यह कोई सद्भाग्य की बात नहीं ই দি दन
तो ऐसा समझते हैं कि धनकुँवर को आप सुयथ्य देला उड़ने थे;
उसके जन्मोत्सब्र में आप हम -छोगों के जन्मोत्यद्र की अपेक्षों
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