गांधी मार्ग | Gandhi Marg

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Gandhi Marg by आचार्य कृपालानी - Aacharya Kripalani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समाजवाद श्रौ खादी ६ सोचें तो हमें तुरंत मान लेना पड़ेगा कि अध॑-शिक्षित तथा विवेचना- शूत्व आदमियों के दिमाग में समा जवाद का धर्म, यौन-प्रदाचार, कुट्ठम्ब, राज्य के प्रकार, उद्योगीकरण तथा अन्य बहुत-सी चीजों के साथ जो सम्बन्ध गढ़ लिया गया है वह समाजवाद का सारभूत सिद्धान्त या तत्व नहीं है। समाजवाद का तत्व उसके 'फालतू मूल्य? (5079]08 ए&108) के सिद्धान्त में (फिर चाहे वद गलत हो या सही) निदह्ित है | इसी फालतू मूल्य! के जस्यि जन समूहों का शोपण जारी रहता ई । यहा 'फालवू मूल्य! मुनाफा, किराया और सूद की शक्त में प्रकट होता है। जिस उद्योग वा व्यवसाय में 'फालतू मूल्य! नहीं बचता यानी जिसयें मुनाफे, किराये या व्याज के लिए गुंजाइश नहीं है, उसे समाजबादी उद्योग सममना चाहिए | वैज्ञानिक ताल के लिए यह आवश्यक नहीं कि ऐसे व्यापार-धन्धों के प्रवर्तक ईश्वर में विश्वास रखते हैं या भौति- कवादी हैं; इससे मतलब नहीं कि वे एक प्रकार के यौन-नियमों में विश्वास रखते हैं या दूसरे प्रकार के वे उद्योगीकरण में आस्था रखते है या नहीं; उनमें समाजवाद का मूल तत्व विद्यमान है | अब देखिये; खादी के उद्याव में 'फालतू मूल्य” के लिए कोई गुंजाइश नहीं हैं, उसमें किराये, व्याज या मुनाफे के लिए कोई गु ग- इश नहीं हे । जो कुछ मुनाफा होता है सब उसी क्षेत्र की सेवा का भार उठाने में खर्च होता है; वास्तविक वा काल्पनिक सेवा करनेवाले किसी दूसरे वर्ग को कुछ नहीं वैँटता । इस क्षेत्र में काम करनेवालों के वेतन में मी बहुत-कुछ समानता है | चंद आंकड़ों से यह बात स्पथ्ट है। जायगी। एक जुलाहे को औसत आय १३ से १५ २०, धोबी की १२ से १५ ०, पेंटर की २५ से ३० रु० और बढ़ई की २५ से ३० रु० मासिक है | . #ये सव आँकड़े युद्ध के पूवं (१६३४) के हैं। इधर स्थिति बहुत बदक्ष गई है। आज के अंक दुसरे होगे फिर भी उनमें समानता का वदी अनुपात कायम है 1--सखंपादक ।




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