हिन्दी कहानी और कहानीकार | Hindi Kahani Aur Kahanikar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झाधघुनिक बहानीवार प्राचीन साहित्यकार नहीं है । व प्राचीनोंके समान पठकोंकि मनमें रसकी थनुभूति उत्पन्न कर सोकोत्तर श्वानन्दकी सष्टि करनेके लिए कहानियाँ नहीं लिखता । साथ ही, वदद मप्ययुगीन कहानीकारोंदी तर विचित्र घर वौतूदस-पूर्ण झस्वाभाविक घटनाधोंका रगीन वर्सन नहीं करता । वर्तमान कहानीकारोंका विषय हैं, जर्जर श्र विपप्ण मानव-जीवन--टसकी समस्याएँ, चिन्ताएँ 'मौर समाघान । श्री ज़ेनेन्दर बमारने कहानी जो परिमापा दी है उसपर हम, दमान _विपम . समस्यायोंकी छाप पाते हैं। उनकी कहानियां वर्गमान परिस्थितियोंशी उपय हैं। इसलिए शशेयगीने श्रपनी चातकों स्पष्ट बरते हुए ठीक दी लिखा दे कि “कद्दानी जीवनदी नछाया है 'औौर जीवन स्थयं एक अधूरी कहानी है ।* प्रेमचन्दने भी 'मानव जीवन राब्दका व्यपद्वार फरे यह बतला दिया है कि वहानीरा चास जौवनुके किसी एक पहलू या खण्डका मार्मिक चित्रण कर्‌ना है । कद्दानी “हास्य की भाँति सक्िप्त' दो, यदद सही बःत दै, लेकिन उसमें जीवनके किसी गदमतम प्रइनका उद्घाटन होता दे, यह न मूलना चाहिये । वढ श्रपने छोटे मुँदसे बड़ी बात कहती दै । यदद सच है कि कहानी पाठरोंके मनोरजनके लिए उचित सामप्रियोका सम्रह छरती है । लेकिन धीयुत, राय शब्दोंमें “व ( बहानी 3.सनोरननके साय-साथ सत्यका उदूधाद़न फरती है |” हम ऊपर कद झायें हें कि कदानीफी निश्चित परिशापा स्थिर करना कितना कठोर कार्य है । सेसिन उपर्युक्त भिन विद्वानों '्ौर कद्दानीकारोंकी परिमापाएँ मैने की हैं डनसे यह स्पष्ट है कि वर्तमान व दानीकी परिभाषा उसके उदय विपयतों खेकर दी निधित वी जा सकती है। 'ारभमे जहाँ कददानीकी परिभाषा झौलीगत थी, वर्दी छाज विययगत दै । प्रेमचन्दने एक स्थानपर लिखा है फि “वर्तमान कहानीका श्ाधार मनोविज्ञान है ।* यह विज्ञान मानव-मनमें पड़ी सकी सोलनेमें 'प्थक परिधम कर रहा है । प्रत्येक युगदी झपनी समस्या होनी दे । ढा० रामरतन भटनागरने ठीक ही कददा दे कि यदि यद भाम्रद दे कि कद्दानीका मनोविज्ञानसे कोई-ने- कर




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