फूलों का गुच्छा भाग २ | Fulo Ka Guchchha Part Ii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कनक-रेखा । সপপপ্প্প্প্প্প্া্পিাগা রা... चार्ली बाबा । ৬১৯৩৩ ख जायका पाकर हेर ह उन्मत्त हो जाता है, यह बात -खूनके लिए मनुष्यकी सोई हुई पाशविक वात्ति भी जग उठती है । शिवरात्रिके दिन शिवजीके मन्दिरमें जितनी भीड होती है उससे बहुत ज्यादा कालीके मन्दिर भेंसेके बलिदानके दिन होती है । उस समय यदि रक्तपात हो जाय तो कौन रोक सकता है £ हमारे अनेक मित्र उस दृश्यको देख आये हैं, पर हम उसको देखना नहीं चाहते | यदि हमारी भी सोई हुईं शादूलबृत्ति जग उठी तो फिर हम उसको रोक न सकेंगे । बलिदान देखनेके हम जितने इच्छुक रहते हैं आरतीके उतने नहीं । आज कानपुरके जजकी अदाठ्तमें जो इतनी भीड़ है उसका भी एक ऐसा ही कारण है । मरे साहबके खानसामा माताबदलने मेरे साहबका खून किया है--इस अपराधमें सेशन जज फोरेस्ट साहबके इजलासमें उसका विचार हो रहा है। ऐसे भारी अपराधमें फॉसी द्वेनिकी पूरी संभावना है । फोरेस्ट साहब बड़े कड़े हाकिम हैं, यह बात सारा शहर जानता है। एक मरे साहबका खून हुआ और अब माताबदलके रक्तपातकी सम्भावना है-क्या ऐसे “तमाशे” को देखनेका चाव कोई रेक सकता है ?




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