महात्मा गाँधी पूर्णाहुति प्रथम खण्ड | Mahatma Gandhi Purnahuti Pratham Khand

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Mahatma Gandhi Purnahuti Pratham Khand by प्यारेलाल - Pyarelal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की । नतीजा यह हुआ कि १९२६ के आगामी चुनावोमे काग्रेसकों १९२३ से ज्यादा सफलता मिली। साथ ही खादीके पुनरज्जीवन और प्रसारका काम बडी तेजीसे आगे वढा। दोनो दलोने अपने अपने दृढ़ विचारोको छोडे विना एक-दूसरेकी सहायता की। वादमे जब सत्याग्रह करनेका प्रसग आया तब जो लोग काग्रेसकी तरफसे विधान-सभाओमे गये थे वे वाहर आ गये और उन्होंने सत्याग्रहके कार्यक्रककी कार्यान्वित करनेके लिए महात्मा गांधीको कांग्रेसका सर्वाधिकारी (डिक्टेटर) बनानेके पक्षमे अपना मत दिया 1 १९४०-४१ में ऐसी ही किन्तु कुछ अधिक कठिन परिस्थिति उत्पन्न हुई, जब भारतको त्रिटिश सरकारने दूसरे महायुद्धके समय युद्धके सम्थेक देके रूपमे घोपित कर दिया! त्रिटिद सरकार चाहती थी कि काग्रेस उसके युद्ध-प्रयत्नोका पूरा समर्थन करे । काग्रेसके भीतर एसे अनेक छोग थे जौ सपूणे समर्थन देनेको तैयार थे, वगतं कि त्रिटिश सरकार भारतको सत्ता तथा जिम्मेदारी सौप दे ओर शासनमे -- जिसमे प्रतिरक्षा और युद्ध-प्रयत्त शामिल माने जाये -- पुरा हिस्सा दे! महात्मा गाधी केवल नैतिक समर्थन देनेको तैयार थे और किसी भी हालतमें जन-धनकी सहायता देनेके विरुद्ध थे। काग्रेस कार्यसमितिने इस वातकी चर्चा की और जब गाधीजी अपने साधियोको अपनी रायका नहीं बना सके, तो वे काग्रेस कार्यसमितिकी चर्चाओसे अछूग हो गये। इस तरह गाधीजीने उन लोगोके लिए अपना कार्य आगे নত্তানল্গী सुविधा कर दी, जिनके साथ उनका मतभेद था। न तो गाधीजीने उनके कार्यमें कोई हस्तक्षेप किया और न अपने विचारोसे सहमत होनेवाले छोगोकी ओरसे काग्रेस महासमितिकी बैठकमे उनके कार्यका विरोध किया। परन्तु ब्रिटिश सरकारने काग्रेसका प्रस्ताव नहीं माना, इसलिए काग्रेसके सहयोगका प्रइन पैदा ही नही हुआ। किन्तु इस अवगणनाके वावजुद काग्रेसमे वहुतोकौ यह आशा बनी रही कि जब युद्ध तेज होगा तब ब्रिठिश सरकार ढीली पडेगी और काग्रेसकी शर्तों पर काग्रेसका सहयोग लेगी। १९४२ के शुरूमें सर स्टैफर्ड क्रिप्सफे साथ इसी आशाके आधार पर चर्चा हुई थी। लेकिन ढीला पडनेके वजाय ब्रिटिश सरकारका रवैया और भी कड़ा हो गया और युद्ध-प्रयत्वके खिलाफ भारतीय विरोध “न एक भाई न एक पाई के नारेके रूपमे प्रगट हुमा ! व्यक्तियोने ब्रिटिश युद्ध-प्रयत्वमे किसी भी तरहकी मदद न देनेंकी दूसरोको सलाह देकर सत्याग्रह किया और उसके लिए वे जेल गये। इस व्यक्तिगत सत्याग्रहके उम्मीदवारोका चुनाव गाधीजी स्वय करते थे। उनमे से अधिकतर लोग जनताके चुने हुए प्रतिनिधि थे -- जैसे विधान- सभाजओके, जिला वोर्डो और म्युनिसिपैलिटियोके, काग्रेस कभिटियोके और दूसरी निर्वाचित सस्थायोके सदस्य । इससे यह्‌ प्रगट होता था कि भारतकी सारी जनता सरकारके युद्ध-प्रयल्नके विरुद्ध है 1 क्िम्स-मिशनकी सधिवा्तकि असफल १५




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