लेबे देव की नायिका | Lebe Dev Ki Nayika

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Lebe Dev Ki Nayika by प्रताप चन्द्र - Pratap Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाटक का अनुवाद करने के बाद तेदेव ने देशी पण्डितो को पदरवर्‌ सुनाया था। उन्होंने सराहा, संशोधन सुझाये । लेबेदेव इस देश के लोगों को जानेता है। ये लोग गर्जव-तर्जन और प्रहसन पमन्द करते हैं । इसीलिए नाटश में घोर ढूँढ़नेवाले चौकीदार की व्यवस्था थी । उसके भाषा-शिक्षक गोलोक दास ने वहा, “साहब, अभिनय किये बिना नाटक का रस नहीं जमता 1 नाटक तो हुआ, अब अभिनय हो 1” नेदेव ने कहा था, “गियेटर कहाँ है? तुम्हारे बंगाली अभिनेता-अभि- नधौ क्ट ह?“ गोलोक दास वोना था, “तुम पियेटर फी व्यवस्या करौ । मैं अभिनेता और अभिनेत्रियों का जौंगाड़ करता हूं 1 लेवेदेव कौ धात हल्की नहीं लगी थी। येगला यियेरर--तेयेदेव बा वंगा! धिय्रेटर | एक बढ़िया और नयी बता होगी । “बहुत अच्छा,” लेवेदेव ने कटा, “तोन महीने, मात्र तीन महीने के भीतर मैं बंगला थियेटर खोलूगा । तुम बंगाली अभिनेता-अभिनेत्षियों का जोगाड़ करो 1 लेकिन काम दोनों ही का सरल नहीं था। तीन मास के भीतर पियेटर की व्यवस्था करनी होगी । बहुत-सा रुपया लगेगा। लगे भले हो बहुत-सा रपया। लेचेदेव भाग्य से जुप्रा खेलेगा। चाहे रोजगार करना पड़े, कज-ठघार सेना पढ़ें, वहू तीन मास के भीतर एक ऐसे थियेटर का निर्माण करेगा जिसका जोड़ इस कलकत्ता शहर के देशी-विदेशी लोग कभी न पायेंगे । थियेटर के लिए अब गवर्तर जनरल की अनुमति चाहिए । सर जान शोर अवश्य ही सुप्रश्तिद्ध वादक को निराश नहीं करेंगे। मगर बंगाली अभिनेता-अभिनेत्री ! वह दायित्व गोछोक दास का है। इसी लिए गोलोक दास नट-नटी की खोज में निकला था। कलकत्ता शहर में খাম” लीला, कवियों का दंगल (पेशेवर तुवकढ़ों के वास्युद्ध का खेल), कष्ण-यात्रा आदि चल ही रही थी | गोलोक दास ने अभिनेता जुटा छिये। हरसुन्दर, विश्वम्भर, नीलाम्बर तथा और भी कहइयों ने सेवेंदेव के सामने परीक्षा दी। ইহ ক্ষ चलाने का जातिगत घन्धा छोडकर यात्रादल में आ मिला है। विश्वम्भर हलवाई-सन्तान है । नीछाम्बर ब्राह्मण-पुत्र हैं। उनके घरों की स्थिति अच्छी है, किन्तु नाटक-दल में धामिछ होने के छोम के चलते ये अपने -झगड़कर भाग आये हैं। इनमे साहस है, स्वर की शक्ति है और का कुछ ज्ञान भी है। सीय-पढ जाने पर ये पियेटर का ढर्रा अपना ही लेंगे । मोलोकनाय ने एक के बाद एक कितनी ही रमपियाँ दिख- + क ^, +




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