शुश्रूषा | Shushrusha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गोपाल रामचंद्र - Gopal Ramchandra
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पं गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी - Pt. Giridhar Sharma Chaturvedi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १० )
'हैं कि कमरे के सम खिडको और दरवाजे अन्द कर और
एक जलती हुई अंगोठो रख कर अहुत से सनथ्य सोते हैं।
एकाध खिहको खेली भो ते! ससका जोचे का आधा साग
बिलकुल बंद कर देतें हैं ओर ऊपर का भाग वह सी किसो
कदर थोड़ा शा खजला हुआ देखने में जाता है। इस पर
सो उन कमरे में सत्रह प्रकार को झअटसट वस्तुएं भरो हु
होली हैं वह ते जदा दो है। ऐसे कमरे में शंद् श्वा को
एकाध लइ्टदर गी केसे ला सकती है ! बाहर से हो जहा
হাহ হা সত 'होना कठिन है वह्ञां कमरे की इवा को
स्थिति का एथक वन करने को आवश्यकता ही नहीं है।
वह भटी इरे कुन्द अर बबाली होगी हो । उस सेने
वाले के। दम, खांसो, शय, कवर, इत्यादि अनेक रोगों में
से कौन सा रोग कब होजाय यह नहीं कहा जा सकता।
ऐसा हे।ने पर भो खेकड़ों लोग विशेष कर छोटे बच्चे ऐसे
दूषित कमरों में सोये बिना नहीं रहते । कमरे में जाकर
सोने के पहिले उस कसरे को सब खिड़कियां के! खुला
देने कौ तक रान््हें सहों सूधती, यह बड़ा आशइचय हैं।
कमरे के दवाजे के! यदि खोल दिया जाय লী उसको
खराब हवा अड्रोस पह़ोस के बड़े सक्ान में घुस कर
उसे सक खराब कर देती है उठने बेठने के कमरे को
खिडकियें शो देखो ता आरों ओर से सदर बन्द
कौर इसका , कारण पूछा जाता है ते! भर के
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