आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यासों में मानव मूल्य | Acharya Hajari Prasad Dwivedi Ke Upnyason Me Manav Muly
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
93.61 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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जनककिशोरी - Janak Kishori
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हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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व तीनों प्रपदपन मैं पहुंचकर, प्र पन वाधिका के समीपस्थ दादी
तक जाति हैं । भट्ट पुस्ष पद में आकर पुन्नों की शाजाओं के सहारे राणमार्थ
पर दोनों की प्रतीक्षा करता है |
पु ऊच्ठवास मैं चिप, भीट्टनी और वाण के घण्डी मान्दर
में पहुपेन की कथा वॉर्प्ति है | मन्दिर के अन्दर एक प्रॉगण में सटा दुआ एक
घर है जो गुफा सदूश दिखाई पश्ता है | भट्टनी की सुरक्षा के लिए नि
ने मान्दर के वुदद पुजारी से यह स्थान किसी . फ़कार दथियाया था य्धित्त
भटूटनी के योग्य स्थान नहीं है सा भट ने अकूषष किया । हैकिन निपृकिम
ज्सी स्त्री इससे उपयुक्त स्थान पान के लिय असमर्थ थी. ।. दिन मैं ऋटट का
रहना दही अलग्मव था । अत :भटुट बाइर जिस आया |
इसी उच्छवास मैं दुद पुजारी का वर्षन है नो भोगी प्रवृत्ति का शव
_ गवी है । अपर पाकर भट्ट ने कॉल्पत धनदत्त नामक सेठ के दारा अपनी
समस्त सम्पत्त्ति को दान देने के हल्लर बृद पुणारी को नियुक्त किया है ससा
छताया । घोभ पुक्त पु पुरी उस ओर जाने लगता है और अकारानूल
भूट प्रॉगिप मै पहुंचकर कुछ व्यवस्था करना चाइता है । कीं समी पस्थ बौद्ठ
पार मै सुगत भर नायक बौद् लिन रहे थे । भीटूटनी उनकों जानती है
' और उसी के अनुरोध पर पाण सुपत कु के पास गोद हैं |
सुगत *्ट्ठ वाप के पिप्ता नयन्ते भट्ट को उनके गुरू भाई होगे के नाते.
जान थे | मदहाराणाधिराण मे नातलन्दा से बौट्ट धर का प्रचार करने के लिप
उन्बें भा था । जद झट ने उन्सें भीट्टनी से सम्बीन्फा कथा सुनायी ती
भट्ट को ज्ञात दुआ कि छुगत भक् देवपुन्र तुवरभ्ितिन्द की श्कलौती कन्या
चन्द्रपी धीति को अच्छी प्रभार पहचान हैं । पे” पाण को आपपासन हू
दूध उन्हें फराध कानि का काकुप बनाते है और उसके लिप अप एक पिाध्य के.
कुमार कृष्ण वर्धन को हानि के लिप भा है क
पैचम उच्छदास मै, बाण के हारा दिदार वे मन्दिर लौटना और
भीट्टनी को आइवस्त करने से लेकर कुमार कष्प करन कूछ वातिाप करन के
बाद मपघ पहुँचाने के लिप कुमार कष्ण यईन द्वारा आउपस्त कर्म की कया
लक ने ।
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