जैन कहानियां १४ | Jain Khaniyan 14
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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महेंद्र कुमार - Mahendra Kumar
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मुनि नगराज - Muni Nagraj
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सोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
सह लमट्ल
कौलाम्बी मे महस्रमल्ल नामक एक वणिक्-पुत्र
रहता था । वह दुर्गुणो का पिण्डथा | दूसरो को
ठगने, झूठ बोलने व चोरी करने में बहुत कुशल था ।
वह नाना भाषाएं जानता था और नाना वेष बनाने
में भी सिद्धहस्त था | धूतंता मे भी वह अग्रणी था ।
रत्नसार नामक रत्नो का एक व्यापारी भी
कौशाम्बी में रहता था । धूतं सहस्रमल्ल वणिक् के वेष
मे एक दिन रत्नसार की दृकान पर आया । रत्नों के
बारे मे पूछताछ की । आक्वति से वह एक भला बनिया
लगता था, अत रत्नसार ने उसे वहुमुल्य रत्न दिख-
लाये । सहस्नमलल उन्हें देखकर तृप्त नही हो पाया ।
उसने और भी बहुत सारे रत्न देखने चाहे । रत्नसार
कुछ लोभ मे आ गया । उसने सोचा, भ्राज अच्छा
ग्राहक पकड में आया है। सहीनोमे विकने वाला
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