जैनागम दिग्दर्शन | Jainagam Digdarshan

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Jainagam Digdarshan by मुनि नगराज - Muni Nagraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रागम {वचार धर्म-देशना तीर्थकर श्रद्धमागघी भाषा में धर्म-देशना देते हैं। उनका अपना वैशिष्ट्य होता है, विविध भाषा-भाषी श्रोतृगण अ्पनी-भ्रपनी भाषा में उसे समभ लेते हैं। दूसरे शब्दों में वे भाषात्मक ঘুহ্যল श्रोताओं की अपनी-भ्रपनी भाषाओं में परिणत हो जाते हैं। जैन- वाह मय में अनेक स्थलों पर ऐसे उल्लेख प्राप्त होते हैं। समवायांग सूत्र में जहाँ तीर्थकर के चौतीस श्रतिश्षयों का वर्णन है, वहाँ उनके भाषातिशय के सम्बन्ध में कहा गया है : “तीर्थंकर अर्द्ध मागधी भाषा में घर्मे का आख्यान करते हैं। उनके द्वारा भाष्यमाण श्रद्ध - मागधी भाषा श्रार्य, अनायें, द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी तथा सरीसृप प्रभृति जीवों के हित, कल्याण भ्रौर सुख के लिए उनकी अपनी-अपनी भाषाओं मे परिणत हो जाती है 1“ प्रज्ञापना सूत्र में आये की बहुमुखी व्याख्या के सन्दर्भ में सूत्र- कार ने अनेक प्रकार के भाषा-आये का वर्णेन करते हुए कहा है : “भाषा-आ्रार्य श्रद्ध मागधी भाषा बोलते हैं और ब्राह्मी-लिपि का प्रयोग करते हैं ।* १. भगवं च रा भप्रहमागहीए भासाएं धम्ममाइक्खई | सावि य रं श्रहमागही भासा भासिज्जमाणी तेसि सब्वेसि आरियमणारियाणं दुष्पप-चउप्पय- मिय-पसु-सरीसिवाणं श्रप्पप्पणो हिय-सिव-सुहदाय भासत्ताए परिणमदइ । -- समवायांग सूत्र ; ३४ २. #@ तं भासारिया ? भासारिया श्रणोगविहा षण्णत्ता । तं जहा-जेणं श्रद्धमागहीए भासाए भासइ जत्य वियरां बंभी लिवी पवत्तई | | ~ प्रज्ञापना ; पद १, ३६




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