अणुव्रत की ओर भाग - १ | Anubrat Ki Or Bhag - 1

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Anubrat Ki Or Bhag - 1  by महेंद्र कुमार - Mahendra Kumarमुनि श्री नगराज जी - Muni Shri Nagraj Jiसोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रणत्रत ॥ भारतीय संस्कृति का प्रतीक ` ~ ३ साथ बढ़ता ही जायेगा । हमेशा सामने रखकर कार्यक्रम निर्धारित करते हैं और जो भिन्न-भिन्न श्रेणी के लोग है, जिनकी भिन्न-भिन्त समस्याएं होती हैं, उन सबमें घुसकर भिन्‍न-भिन्‍न रीति से संगठित रूप से सदाचार और चरित्र को प्रोत्साहन देने का काम किया जा रहा है। यह काम तो धर्मग्रुरुथ्रों का ही हमेशा से रहा है | ओर आज भी है| जितना असर धर्माचार्यों का, चाहे वह किसी भी धर्म अ्रथवा' ~ पंयके क्यों नहीं हों; लोगों पर पड़ता है, उतना इसरों का नहीं। श्राज की | ` स्थिति मे यह्‌ भ्रत्यन्त आवश्यक और महत्त्वपूर्ण काम हो रहा है, जिसकी ` सफलता प्रत्येक विचारशील व्यक्ति चाहता रहेगा । मैं यह आशा करता हं कि यह प्रयास अब व्यक्ति की गुभकामनाग्रो मौर मेत्रीपूर्ण भावनाओं से पुष्ठ होकर गानव-समाज के लिए कल्याणकारी प्रभाव का रूप धारण करेगा। मैं और अधिक कहने की आवश्यकता नहीं समभता, क्योंकि बात बहुत सरल है और कहने-सुनने की अपेक्षा विश्वास करने श्रौर जीवन मे उतारने की श्रधिक है। में इस आन्दोलन की सफलता की कामना करता हूँ और मेरी यह प्रार्थना है कि संसार के सभी राष्ट्र और मानव-समाज के सभी भग॒ इस सदृभावना से प्रेरित हों और. शान्ति स्थापना में योगदान दें। টি यह सन्तोष की बात है कि श्राचार्यजी काल और देश की परिस्थिति को _




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