प्रेम पत्र राधास्वामी भाग ४ | Prempatra Radhaswami Bhag 4

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Prempatra Radhaswami Bhag 4 by राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टुकेड्ीलॉडवैल्टडपफैडनडपीनरिडै दल डॉससपडदौनरॉडीनडीडडैमैबडीजडडीन्टॉड मौन न प्रेस पत्र साग चेाथा श्र जी न रहे नहीं ता प्रीत और प्रतीत में खलल पड़ेगा और दः फिर सरन भी जैसी चाहिये बैसी मजबूत नहीं होगी ॥ 4 ३४- ९३ जा कोइ जेसा तैसा नाता संत सतगर + से जाड़ेगा उसका वे अपनी दूधा से एक दिन जरूर मद पार लगावेंगे यानी आहिस्ते २ चंद जनम में उसकी ड प्रीत और प्रतीत बढ़ाकर और मनासिब और जरूरी करनी करवा कर निज धाम में बासा देंगे ॥ 4. ४६-९४ इस वास्ते जिन जीवों का रिश्ता संत # सतगरु या साध गुरू से लग गया है उन्हीं के 2 बड़भागीं समसना चाहिये ओर एक दिन बेही मन रे आर माया और काल और करस के मस्तक पर दि - चरन रख कर संतों के निज देश में पहुँचेंगे । क्योंकि संत सतगुर का सूत घर सुक़ास से लगा 2 मे हुआ है और जा उनसे म्रीत करेगा उसका भी रद पु रिश्ता कल सालठिक के चरनीं से जोड़ देंगे और २ जाकि वे सबे समरत्थ और कुल रचना के मालिक १ है इस वास्ते काईं उनका हक्म टाल नहीं सकता ॥ ग ३०- १४ अब गोर करना चाहिये कि आया कल १ जीवों का चाहे औरत होने या मद सत्त परुष राघा- स्वामी दृयाल और उनके प्यारे संत सतगरु की ड 4 सरन जैसी बसे तैसी लेना चाहिये या कि सन और | ह साया और भागी के जाल में फंसे रह कर चौरासी मे में झरमते रहें और चारम्बार देह घरकर दुख सुख ह और जनम समरन का कष्ट और केश भोगते रहें ॥ इगूट्मूस्‍्यूस्ट्न्यूस्यून्दूट्यून्शूस्दूव्यूम्पुल्य्न्द्न्््य्स्दून्दन्य्न्य्न्पन्य्य्न्यन्यन्यन्दः शुम्शुन्युन्दुन्दुन्शुन्दुन्दुन्युन्युन्दुन्युन्युन 2 दरविसौन्ट




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