मेवाड़ पतन | Mevaar Patan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Ray
No Information available about द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Ray
रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दस्य ।] पहला अंक 1 ই
मदसे पागल और अनन््धे हो रहे हैं। चलो, इस वार सर्वस्व नष्ट हो
जायगा।
अजय ०---राणाजीने भी तो यही कहा था कि अब मुगलों-
का मुकानला करना मेवाडके छिए असम्भव है, इसलिए व्यथे रक्त-
पात क्यो किया जाय *
गोर्विद् ०--अजय ! क्या तुम भी उन्हींकी तरह हो गये £ क्या
तुम चाहते हो कि हम छोग दास होकर जुएँमे गला फेंसा दें १ मैं
जानता हूँ कि मुगछक दिलछीके बादशाह है, और बादशाहके विरुद्ध
विद्रोह करना पाप है ! लेकिन मेवाड राज्य भी तो अभी तक स्वाधीन
ही है। जब तक गोविन्दसिंहके शरीरमे प्राण है तब तक उसकी
स्वाधीनता नष्ट न होने पायगी । ख्गातार सात सौ वर्षसि मेवाडकी
जो रक्त ध्वजा हजारो ओधियो ओर बिजल्योकी परवा न करके
अभिमानपूर्वैक उड रही है, वह क्या केवल मुगलोकी छाल छाल
अंखिं देखकर गिर जायगी ? कभी नहीं । तुम जाओ ओर राणाजीसे
कह दो कि मै आता हूँ।
[ अजयसिंह जाते हैं । ]
( अजयर्सिहके चले जानेपर गोविन्दर्सिह दीवारपरसे टेंगी हुई तलवार
उतारते है उसे धीरेधीरे म्यानसे बाहर निकालते हैं और तब उसे सम्बोधन
करके कहते है )--...“ मेरी प्यारी साथ देनेगटी ! देखो, जबतक तुम
मेरे हाथमें रहो तब तक महाराणा प्रतापसिंहका अपमान न होने पावे |
प्यारी | इतने दिनो तक मैं तुम्हे भूठ गया था, शायद इसीलिए तुम
इतनी मलीन हो रही हो ! लेकिन तुम व्याकुल मत होओ | इस बार मैं
तुम्हें अपने साथ मेवाडके युद्धमें ले चढूँँगा । तुम्हें मुगलोंका गरमा-
गरम रट्टू पिछाऊँगा। तुम मुझे क्षमा करो और मुझसे गके मिक्ो। ”?
User Reviews
No Reviews | Add Yours...