मेवाड़ पतन | Mevaar Patan

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Mevaar Patan by द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Rayरामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

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द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Ray

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रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दस्य ।] पहला अंक 1 ই मदसे पागल और अनन्‍्धे हो रहे हैं। चलो, इस वार सर्वस्व नष्ट हो जायगा। अजय ०---राणाजीने भी तो यही कहा था कि अब मुगलों- का मुकानला करना मेवाडके छिए असम्भव है, इसलिए व्यथे रक्त- पात क्यो किया जाय * गोर्विद्‌ ०--अजय ! क्‍या तुम भी उन्हींकी तरह हो गये £ क्या तुम चाहते हो कि हम छोग दास होकर जुएँमे गला फेंसा दें १ मैं जानता हूँ कि मुगछक दिलछीके बादशाह है, और बादशाहके विरुद्ध विद्रोह करना पाप है ! लेकिन मेवाड राज्य भी तो अभी तक स्वाधीन ही है। जब तक गोविन्दसिंहके शरीरमे प्राण है तब तक उसकी स्वाधीनता नष्ट न होने पायगी । ख्गातार सात सौ वर्षसि मेवाडकी जो रक्त ध्वजा हजारो ओधियो ओर बिजल्योकी परवा न करके अभिमानपूर्वैक उड रही है, वह क्या केवल मुगलोकी छाल छाल अंखिं देखकर गिर जायगी ? कभी नहीं । तुम जाओ ओर राणाजीसे कह दो कि मै आता हूँ। [ अजयसिंह जाते हैं । ] ( अजयर्सिहके चले जानेपर गोविन्दर्सिह दीवारपरसे टेंगी हुई तलवार उतारते है उसे धीरेधीरे म्यानसे बाहर निकालते हैं और तब उसे सम्बोधन करके कहते है )--...“ मेरी प्यारी साथ देनेगटी ! देखो, जबतक तुम मेरे हाथमें रहो तब तक महाराणा प्रतापसिंहका अपमान न होने पावे | प्यारी | इतने दिनो तक मैं तुम्हे भूठ गया था, शायद इसीलिए तुम इतनी मलीन हो रही हो ! लेकिन तुम व्याकुल मत होओ | इस बार मैं तुम्हें अपने साथ मेवाडके युद्धमें ले चढूँँगा । तुम्हें मुगलोंका गरमा- गरम रट्टू पिछाऊँगा। तुम मुझे क्षमा करो और मुझसे गके मिक्ो। ”?




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