महापुरुषों के सान्निध्य में | Mahapurushon Ke Sannidhya Mein

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Mahapurushon Ke Sannidhya Mein by ब्रजगोपाल दास अग्रवाल - Brajgopal Das Agrawalशरद जोशी - Sharad Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ सुनकर मुपे शम आती किंस दुवल मुहुतं मे उस चिट्टी की वात वता बैठा था, सोचकर मेरे सकोच का ठिकाना न रहता । रवि ठादुर वहुत बडे आदमी हैं सैक्डा कामो मे व्यस्त हैं । एक छोटे लडके वी चिटठी वा जवाब देन के लिए उनके पास वक्‍त वहा ? इसकी आशा लेकर बैठे रहना ही मेरी भूल है। दिन पर दिन गुजरता गया। एक दिन एकाएक घर के दरवाजे पर डाकिए वी आवाज सुनाई पडी । आश्चय ! वह मेरा नाम ही पुकार रहा है। दौडा गया। उसने एक लिफाफ्ा मुझे थमा दिया। ऐं । मये लिफाफे मे चिट्ठी क्सिमे भेजी २ लिफाफे की ओर देखकर ही सारे देह मन मे एक सिहरन दौड गई। हाथ वी इस लिखावट से मैं अच्छी तरह परिचित्त हु! कारण भी स्पष्ट बता दू। उन दिनां प्रवासो के पृष्ठ पर “दिलखुश' का विज्ञापत छपता था। उसमे रवी द्रनाथ के हस्ताक्षर कै व्लोंक वे साथ अभिमत प्रकाशित होता था। उस लिखावट को देखकर हम लोग नक्ल करनं की चेष्टाः करते! यही कारण है कि रवी द्रनाथ की लिखावट से हम लोग खूव परिचिते । झटपट लिफाफा खोलकर पत्न आखो के आगे रखा। जो सोचा था, चही। पत्न के अत मे हस्ताक्षर हैं---श्री रवीद्रनाथ ठाकुर। मैं उस वक्‍त की बात बह रहा हू जब रवीद्वनाथ ते 'श्री' लगाना नहीं छोडा था । उने बय लिखा था, यह्‌ तो इतने दिन बाद याद नहीं आता, मगर उस दिन यही वात सवसे ज्यादा महत्व की थी किं स्वय रवि ठाकुर ने पत्त लिखा । मेरे मन कौ हालत ऐसी थी जसे पागल को पशमणि की खोज मिल गई हो। जिसे देखू उसी को चिट्ठी खालकर दिखाऊ 1 इस घटना के बहुत दिना वाद की बात । तब हम लोग कॉलेज मे पढते थे } एकाएक सुना कि रवीद्घनाथ कलकत्ता ,आ रहे है । एलफ्रेड मच पर उनका लिखा “शारदोत्सव' नाटक खेला जायेगा 1 हैरिसन रोड और कॉलेज स्ट्रीट के मोड के पास ऐलफ्रेंड थियेटर है 1 आज वह सिनेमा हाउस हो गया है और उसका नाम भी बदल गया है।




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