अंग्रेजी साहित्य की रूपरेखा | Angrezi Sahitya Ki Rupareka
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंग्रेजी साहित्य ११ *
संग्रहीत हुई । मिल्टन को जो केवल कवि के रूप में जानते हैं, उनको पता नहीं कि अपने
निबन्धों में उस महाकवि ने गद्य का कितना प्रखर रूप सिरजा है। गृह-युद्धों के अवसर
पर उसने जिस गद्य-धारा का सृजन किया वह उस काल के अंग्रेजी साहित्य में अनुपम
है। मिल्टन अंग्रेजी साहित्य का प्रायः पहला पैम्फ़ेलटियर है जिसने कलम का उपयोग
: जन-संघर्ष के पक्ष में किया । क्रामवेल के नेतृत्व ने उसमें मानवता के विजयी भविष्य
के प्रति अद्भुत निष्ठा और आशा जगा दी थी । उसी संघर्षं की कटुता ग्रौर मानवता
के प्रति सजग निष्ठा ने जीवन के अन्तिम सालों में दृष्टिहीन, प्रायः निराश मिल्टन को
अपना वह अद्भुत वीरकाब्य लिखने को बाध्य किया जो 'पैराडाइज़ लॉस्ट' और 'पैरा-
डाइज रिगेन्ड' के नाम से जगत मे विख्यात हए । इनमें पहला काव्य-खंड सन् १६६७
में प्रकाशित हुआ, दूसरा चार वर्ष बाद सन् १६७१ में ।
मिल्टन ने जो जीवन के भीतर भी संघर्ष की व्यवस्था पायी, वह निश्चय तत्कालीन
ऐतिहासिक स्थिति का प्रतिविम्ब था। 'कोमस' में उसने उसी अन्तस्संधर्ष की व्याख्या की ।
मिल्टन कौ सभी कृतियों में 'कोमस' आज विशेष लोकप्रिय है | इसी प्रकार 'पैराडाइज्
लॉस््ट' में ईव और एडम संघर्ष करते हैं, जैसे क्राइस्ट सैटन के विरुद्ध 'पैराडाइज् रिगेन्ड'
में संघर्ष करता है और सैमसन एगोनिस्टस में मिथ्या मतों के विरुद्ध । 'पैराडाइज-
लॉस्ट' सब यूगों के लिए महान् कृति है। एडम और ईव, मुमकिन है, हमारे श्राज के
जीवन में महत्व न रखते हों परन्तु मिल्टन के शैतान का विद्रोह निश्चय एक जीवित
परम्परा है, जिसमें हम सदा साँस ले सकते हैं । मिल्टन न केवल प्यूरिटत सम्प्रदाय का,
वरन् विर्व साहित्य का एक महान् कृतिकार है ।
सेमृएल बटलर (सन् १६१२-१६८०)
“ सँमुएल बटलर प्यूरिटनवाद का सवसे बडा तात्कालीन प्रतिवादी है।
जर्हा मिल्टन ने प्यूरिटनवाद को सुन्दरतम चित्रित किया वहाँ बटलर ने उसे
अपने व्यंग्यात्मक काव्य 'हुडीबास' में मिय्यावाद का मूत्तिमान स्वरूपः कहा । वटलर
मिल्टन के प्यूरिटनवाद का इस प्रकार सबसे बड़ा प्रतिद्वन्द्ी हुआ | वटलर का यह
'भाण' वास्तव में अपनी भणैती की नग्नता में मिल्टन की शालीनता का ठीक जवाब
है । मिल्टन, कहते हैं, अपने जीवन-काल में जनता में अश्रिय हो गया था यद्यपि इसके
लिए विशेष प्रमाण नहीं मिलता। वस्तुतः उसके जीवन-काल में ही उसकी कृतियाँ
श्रद्धा से पढ़ी गयीं और १८वीं सदी में तो उसका अनुकरण भी काफी हुआ 1 इसमें
फिर भौ सन्देह नटीं किया जा सकता कि मिल्टन की काव्यधारा क्लिष्ट धी श्चीर उसमें
তিল श्रौरं ग्रीक सन्दर्भो कौ भरमार है । लालेग्रों' और “इत्पेन्रेसो' उस शैली के
सिद्ध प्रमाण हैँ । मिल्टन की पद्धति के विरोधी कवियों ने 'हिरोइक कपलेट' का प्रयोग
किया, जिसे कवि पोर ने विशेष महत्व देकर प्रसिद्ध किया ।
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