समता दर्शन और व्यवहार | Samata Darshan Or Vyavahar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७ )
নিঅযানুঙ্গম
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प्रात्म-चिन्तन व भ्रात्मालोचना
सत्साधना का नियमित समय
स्वाध्याय एव मौलिकता
दु ख-सुख देना
श्रात्म-विसर्जन
आनन्द पथ का पथिक
परमात्म-दशेन के समतापुणं लक्ष्य तक
यह् कायरता कंसे मिटे ?
पैर कहाँ-कहाँ कच्चे हैं रौर क्यो ?
तीसरे के बाद यह चौथा सोपान
समता इन्सान और भगवान् की
यह कर्मण्यता का मार्ग है
गुणों के स्थानों को पहिचारनें और आगे बढें
जितनी विपमता कटे, उतने गुण অক
परमात्म स्वरूप की दाशंनिक भूमिका
त्याग जीवन विकास का मूल
परम पद की ओर गति
भ्रप्पा सो परमप्पा
समता का सर्वोच्च रूप
साध्य निरन्तर सम्मुख रहे ।
समता : व्यवहार के थपेडों मे
व्यवहार के प्रवल थपेडे
स्वहित की आरम्भिक सज्ञा
स्वहित के सही मोड की वाधाएँ
समता का दुर्दान्त शत्र-स्वार्थे
লুলিবকসথা জী ভুগ্রাহী चाहिये
पृष्ठ
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१२४ से १४२
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