श्रावक धर्म प्रकाश | Shravak Dharm Prakash

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Shravak Dharm Prakash by ब्र. हरिलाल जैन - Bra. Harilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सावकधस-प्रकाश ] [ २७ अरे जीव ! इस तीजत्र संक्‍्लेशसे भरे संसारमें भ्रमण करते हुए सम्यग्दशनकी प्राप्ति अति दुलेभ है । जिसने सम्यण्दगेन प्रगट किया उसने आत्मामें मोष्ष्का वृक्ष वोया हे । इसलिये सर्व उद्यमसे सम्यग्दशंनका सेवन कर । सम्यग्दशन भाप्त करनेके पत्नात्‌ क्या करना वह अब चौथे शछोकमें करते हैं-- ५ ০৬ ২১5০৬ ২১০২৬ ২১১০৯ ২২০৫৬ ২১০৫৯২১০০৫৬ ৭৯১৫৮ ২১৯৩৬ पड ৫ ৫ 5 जीवनकी सफलता & ध ¢ अर्‌, जगतके जीव अपने चैतन्ययुखको भूलकर विपय-कपायमें %ঃ £ सुख मान रहे हैं, परन्तु अपना जो चैतन्य सुख है उसकी सुरक्षाका ८4 ¢ अवकाश नहीं लेते; उनका जीवन तो विषयोमें नपट्टठ हो जायेगा और 48 £ व्यथ चला जायेगा । विपर्योसे विरक्त दौकर आस्मिक सुखक्रे अभ्यासमें ९८ 9 जो जीवन वीतता है वही सफल दे । २८ 2, 2১ ५ > £ € নি ২১০০ ২১:০৯ ১৩ १००७ २७८७ १०८३७ १७८२६ ५७८६६ पेट:




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