प्रेम सन्देश | Prem Sandesh

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Prem Sandesh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ = স্পা পপ ० * ४ {( ३५.) -| हाज्ञिरी देताः हे । भगवतगीता में जा बजा कृष्ण महाराज ने अजन को.उनः की भक्ति करने के लिए आज्ञा दी है। फरमाया हे ~ मन्मना भव सद्धक्तो मदयाजी मां नमस्कुरू । मामवेष्यासे सत्यं ते प्रतिजाने भियो-ऽसि भे ॥ स्वं धमौन्‌ परित्यञ्य मामेकं शरणं .बंज ।. अहं स्वां स्व पपिभ्यो मोचयिष्यामि मा. शुचः ॥ अ्थ--हे अजुन ! सुक मे मन लगा।.मेस. भक्तं हो । मेरा पुजनेवला हो । मुखे नमस्कार कर। तब तृ धिला शुबह मुझे प्राप्त होगा.।. तेरे लिए में सच्ची प्रतिज्ञा करता | हूँ कि तू मेरो प्यास है। रे धर्मो को त्याग कर सिर्फ मेरी सरन घारन कर । में तुक को सारे पापों से बचा लूंगा। तू शोक मत. कर । ओर जगहों पर कहा है कि “ जो भकक्‍्तंजन सब कर्म मेरे में अपन करके पूरे दिल से मेरा ध्यान करते हुए मेरे में सरनागत हैं. उन्हीं को: इस मृत्यु के संसार सागर से में फ़ोरन पार कर देता हूं क्योंकि उनका चित्त मेरे में लगा हे । अगर कोहं निहायत ही दुराचारी यानी बदचलन भी सच्चे दिलसे मेरी भक्षित करता है तो उसे भला ही समना चाहिये क्योंकि उसने भला निश्चय किया है। जो शुरूस पत्र, फूल, फल व जल सुभे भक्ति ले देता है उस शुद्ध हृदय वाले का भ्रम से भेंट किया हुआ वह में खाता हूं। में | রশ




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