सम्मलेन पत्रिका | Sammelan Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुखदेव कृत 'बजिकप्रिया' १५
दिन मार्नाहि जो देखौ लिखौ बाचि बाचि मस्या ।
सुखद सीख सुखदेव हमारी यह मति रहियो आई ॥१४॥
मनो मन भें राखिबेको विचार (१)
दोहा
साई लाई अरु ठगनईः साभौ* जुवा वधार ।
यल्गाई^ कौज नही यह मत वणिकं विचार ॥१॥
साहुन कौर्जिय वनिजमो जो दरबार बिकाइ ।
गाठ लेत देतन कटे महंगे मोल मिलाइ ॥२॥
सामुन कातिक चैत प्रनि गुनि निधरक हो वंट ।
जे तोनों मदे सदा सदा जिवारो' অত ॥३॥
काढो दाम असाढ़कर सामुन भादों साहु ।
कातिक क्वार किसान को तीनो समय उगाहु ॥४॥
अरिल्ल
सदां जिवारो जेठ वस्तु तहं बेचियो ।
तरकु भादवे पर गाहे एेचियो ॥
काल अची तो परे कातिक आइके |
परत चैतत में मीन अलहनो“ खाइक॑ ॥५॥
बोहा
जेट जिवागो जेठ भरि तरकु दिनन कौ बात ९ ।
काल रहत ह बरष दिन मीन महीना सात ॥६॥
শপ শা পাশপাশি
, অমালা
ऋण
लागडांट
» सजायत
अलगाई, कलह
, জত্ব। जोवयुक्त
* बसूल करो |
' জী, লৃক্ষলানী
तेजी महोना भर, मन्दी दिनो की
नी
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