सम्मलेन पत्रिका | Sammelan Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुखदेव कृत 'बजिकप्रिया' १५ दिन मार्नाहि जो देखौ लिखौ बाचि बाचि मस्या । सुखद सीख सुखदेव हमारी यह मति रहियो आई ॥१४॥ मनो मन भें राखिबेको विचार (१) दोहा साई लाई अरु ठगनईः साभौ* जुवा वधार । यल्गाई^ कौज नही यह मत वणिकं विचार ॥१॥ साहुन कौर्जिय वनिजमो जो दरबार बिकाइ । गाठ लेत देतन कटे महंगे मोल मिलाइ ॥२॥ सामुन कातिक चैत प्रनि गुनि निधरक हो वंट । जे तोनों मदे सदा सदा जिवारो' অত ॥३॥ काढो दाम असाढ़कर सामुन भादों साहु । कातिक क्वार किसान को तीनो समय उगाहु ॥४॥ अरिल्ल सदां जिवारो जेठ वस्तु तहं बेचियो । तरकु भादवे पर गाहे एेचियो ॥ काल अची तो परे कातिक आइके | परत चैतत में मीन अलहनो“ खाइक॑ ॥५॥ बोहा जेट जिवागो जेठ भरि तरकु दिनन कौ बात ९ । काल रहत ह बरष दिन मीन महीना सात ॥६॥ শপ শা পাশপাশি , অমালা ऋण लागडांट » सजायत अलगाई, कलह , জত্ব। जोवयुक्त * बसूल करो | ' জী, লৃক্ষলানী तेजी महोना भर, मन्दी दिनो की नी 2 টি তে এ < < ~ ~




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