विचार - दर्शन | Vichar Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विचार-दशंन
ही बना रहा | बोद्ध धर्म इस समय बड़ी उन्नति पर था। गौतम बुद्ध इस समय भगवान्
माने जा रहे थे । उनके इस अलोकिक रूप ने स्पद्धां की दृष्टि से तत्कालीन बैदिक
धर्म के विकास में प्रतिष्ठित राम को भी ईश्वर मानने में सहायता दी। एक तो राम
पहले से ही महापुरुष की विभूतियों से संपन्न थे, अब राम में ईश्वरत्व की प्रतिष्म
भी हुईं | इसलिए राम के इन दोनों चरित्रों में संब्रद्धता स्थापित करने के लिए. राम -
को अवतार के रूप में भी मान्यता मिली; अर्थात् वे ईश्वर होकर भी अवतार के रूप
में मनुष्य हुए । वायु-पुराण जो ईसा के ४०० से लेकर २०० वर्ष पूर्व का मन्थ माना
जाता है, राम को विष्णु के अवतार-रूप में प्रस्तुत करता है | ईसा के दो सौ वर्ष बाद
नारायणीय में भी विष्णु के अवतारों म॑ राम का वर्णन है। नारायणीय के बाद
संहिता में विध्ु के साथ शक्ति का संबंध होने के कारण राम के साथ सीता की शक्ति
भी जोड़ी गई | राम के देबी व्यक्तित्व की ज्योति विध्णु-पुराण में बिखरी जो ईसा
के ४०० वर्ष बाद लिखा गया । इस समय उत्तर भारत में गुप्त-बंश शासन कर रहा था |
गुस-षश के नरेश परम भागवतः उपाधि से श्रपने नाम को अलंक्ृत करने में अपना
गोरव समभते थे | उनसे भी विष्णु-पूजा में विशेष सहायता मिली | ईसा के ६००
वर्ष बाद “राम पूर्व तापनीय उपनिषद्! और शम उत्तर तापनीय उपनिषद्” मे राम ब्रह्म
के पूर्ण अवतार माने गये। आगे चलकर अ्रध्यात्म रामायण' में तो यम देवत्व
के रूप से ऊँचे शिखर पर पहुँचे । उनके प्रति भक्ति की चरम अभिव्यक्ति भागवत-
पुराण द्वारा हुईं । 'भागवत-पुराण' ने राम की भक्ति एक संगठित संप्रदाय के रूप में
प्रचलित की । दक्षिण भारत में इसी समय भक्ति के विधायक अ्लवारों की भाव-भूमि पर
भी रामानुजाचाय ने विशिष्ह्वत के सिद्धान्त में राम की भक्ति का प्रचार किया।
भ्री रामानुजाचाय की शिष्य-परंपरा के पाँचवे शिष्य रामानन्द ने उत्तरी भारत में इसी
रांमननाम का प्रचार जाति-बन्धन को दीला कर सर्वसाधारण में किया। महात्मा
तुलसीदास ने इन्हीं रामानन्द के आदशों को ध्यान में रखते हुए, राम के रूप को
जन-साधारण के इतने समीप तक पहुँचा दिया कि सारी जनता 'सियाराममय” हो
उठी | जनता को यह कथा समझाने के लिए. तुलसी ने उसे जन-साधारण की भाषा
ही में संवारने की अ्रभूतपूर्व क्षमता प्रदर्शित की :
भाषा-बद्ध करब में सोई । मोरे मन प्रबोध जेहि होई ॥
तुलसीदास ने जहाँ राम को विधि हरि शंभ्रु नचावन हारे! की विशेषता से संपन्न किया
बहा उन्होंने “बिरही इव प्रभु करत बिषादाः कहकर संसार से राम की एकरूपता
प्रद्शित की । यों तो महात्मा कबीर ने भी राम की भक्ति जनता में प्रचारित की, किन्तु
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