जैनेन्द्र की कहानियां भाग - २ | Jainedra Ki Kahaniyan Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनन्तर
मैंने डपट कर कहां, (सो আমা |?
“बोलीं, “अच्छा बेटा ।'
झौर बोलते के साथ ही खाट पर चुपचाप-सी लेट गयी ।
पर दस मिनट लेटी न रही होंगी कि फिर वेठ गयीं । उन्होने मुझे
सोया जाना होगा । इस बार मुभसे कुछ-कहते-कुछ करते न बना वह्
अंधेरे में क्या चाहती थी, क्या पतोचती थी ?
उधर से झ्रॉख फेर कर अँधेरे में ऊषर छत में श्रॉख किये पड़ा रहा,
सोचता रहा, लेकिन सोचता भी नहीं रहा । ऐसे कब भपको आ गयी
पता नही । लेकिन चार का घटा साफ कान में आकर बजा ।
आँख खुली । मूँह फेरा । देखता क्या हूँ कि मा उठती है : सधी और
दुबली देह । जाकर लालटेन उठाती है और लिये-लिये घर के काम काज
में लग जाती है ।
देखा प्रौर मैने कस कर आंख मींच लीं। फिर जो सोया तो उठा
कहीं जाकर साडे आठ बजे । पाता हूं कि सिर पर खडी माँ कह रही
है, “यह सोने का वक्त है, रे चल उठ, मुँह हाथ धोके श्रा, नही तो तेरा
दूध ठडा हो रहा है।
उठके देखता हूँ कि चुन्नू माँ के सामने बठा दूध पी रहा है। चुन्न्
ने कहा, “उठिये, भाई साहब ।
मैंने खाट से कटपट खड़े होकर कहा, “लो, লী आया ।'
User Reviews
No Reviews | Add Yours...