मरु - प्रदीप | Maru Pardeep
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~ मरु-प्रदीप
श्रोर कुछ पूछना है या बस !
पूछना बहुत कुछ है। जब तक ठम्हारे पास बैठंगी पूछती रूँगी।
सिवाय पूछने के--तुमसे लेने के--मैंने किया ही क्या है * में साकार
प्रश्न हूँ जो उठते-बैठते, चलते-फिरते, खाते-पीते, सोते-जागते, चला
करता है। आ्रादि नहीं--मध्य नहीं--अंत नहीं--जिसकी रेखाओं में
'दिग-दिगन्त की शुन्यता वक्र हो कर स्पंदित होती रहती है---मंकृत
হী उठती है| भेरे प्रश्नों की न चलाओ ठुम | उनकी थाइ नहीं है |
उनके अ्रर्थ न हो--संगति न हो--संठुलन न हो पर जो नहीं है
उसको लेकर मेरे प्रश्न नहीं चलते | ओर मेरे सामने जो है, वह
बेमानी हो सकता है, उसे बेकार ओर बेनिशान कद्दा जा सकता है,
पर उसके अस्तित्व से इंकार नहीं किया जा सकता | तुमने मुझे
बताया नहीं
क्या करेगी इन बातों को जान कर !
यह में भी नहीं जानती । जानने के पहले यह जाना भी नहीं जा
सकता । पर जिन बातों को जानने में कोई हज न हो, उन्हें जान
लेना चाहती ह | तुम्हीं ने उस दिन कहा था, जानना ही होना है |
मुझे मालूम है, में कमी हो नहीं सकती | जानकर ही क्यों न अपनी
सृष्णा की आंशिक पूर्ति करूँ |
यही जानने को बाकी बचा है | सारी विद्या पढ़ ली है न ! सुन।
लड़के हों या लड़कियाँ, उन्हीं प्रोफेसरों को तंग करते हैं और बनाते
हैं जो पग-पग पर अपने प्रोफेसर होने के लिए. माफी माँगते चलते
. हैं--मेरा मतलब है, मौन भाषा में | जो अध्यापन को आत्मश्रमि-
व्यक्ति का माध्यम न मान कर सुविधा और सौदा सममते हैं-..-जो.अपनी
दीनता कौ भावना कोएक नकली बौद्धिक आमिजात्य-सचक अलगाव
के द्वारा जाहिर करते हैं--जिनके पास स्वार्जित जीवबनसार और `
स्वतंत्र अन्तसज्योति नहीं होती--जो विचारों की स्वतंत्रता और दृष्टि
की विभिन्नता का आदर नहीं कर पाते | मुझे कोई तंग नहीं करता---
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