तमसा | Tamsa

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Tamsa by श्री रामेश्वर - Sri Rameshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ | बनता जो अत्तर्यामी जिस ने यह जालः स्वा है | अपने हा हा कार का परिचय देते हुए रागे चल कर कहा? जी कहते हैः-- अनुभव ই जिन्हें न कोई दुखियों के दुख दारुण का, सम्भव है, समझा न पाये यैह हाहाकार करुण! का । किन्तु कर्णः जी को यह्‌ हाहा कार ही तो हिन्दुस्तान की दारुसं दीनतां का हाहाकार है । वास्तविकता के दिगुशन से दुर भागने वाले चोर शगार फे मन-मोदक उड़ाने बाले कतियो से बह कहते है-- सल चुका टर ~ ज्वाला मे লন - शिख সুমা कमी का, सावन फे, श्रे कवि !. क्यों गाते रस-रांग तभी का ? करणा, जी केवल कृषकों ओर अमकारों के हूटे-फूटे धरों ओर भोपड़ों में ही नहीं गए, उन्हों ने जहाँ भी ऋन्‍्दन सुना बहीं पहुँचे,




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