हिन्दू धर्म की समीक्षा | Hinduu Dhramakii Samiiqsaa
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री - tarktirth lakshman shastri
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नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रास्तावेक
नागपुर विश्वविद्यालय और उसके कुलगुरु नाना साहब केदारका में
अत्यन्त आमभारी हूं जिन्होंने मुझे हिन्दू-धर्म-समीक्षा-विषयक व्याख्यान
देनेके लिए. आमन्त्रित किया और फिर उन व्याख्यानोंको प्रकाशित भी
कराया ।
इन व्याख्यानोंमें हिन्दू धर्मकी समीक्षा ऐतिहासिक पद्धति और ऐति-
हासिक समाजशास्त्रकी दृष्टिसे की गई है । इनमें हिन्दू-धर्मकी जो
आलोचना की गई है, वह अनेक शिक्षितोंको जचेगी नहीं; इतना ही
नहीं बल्कि उन्हें ऐसा भी लगेगा कि यह एक नया पाखण्ड अथवा
धर्म-विध्वंसक कार्य है। धर्म मानव-जातिके लिएः अफीम है, इस
प्रकारके विचारसे प्रेरित होकर यह समीक्षा नहीं की गई है । किन्तु इस
समीक्षाके मूलम यह प्रेरणा है कि धर्मकी समीक्षा ही सारी समीक्षाओंका
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पहले व्याख्यानमें आगेके दूसरे ओर तीसरे व्याख्यानके विचारोंकी
आधारभूत विचार-सरणि रक्खी गदं है । इसमें प्रत्यक्ष रूपसे हिन्दू
धमकी समीक्षाका प्रारंभ नहीं क्रिया गया है, इससे कुछ विषयान्तर-सा
जरूर मालूम होगा। परन्तु आधुनिक समाज-राख्रकी ओर मानव-जातिः
शासत्रकी धर्म-मीमांसासे बहुत ही थोड़े लोग परिचित हैं, इस लिए
अगले व्याख्यानोंके विचारों ओर उन विचारोंकी सामान्य भूमिकाको
अच्छी तरह समझनेके लिए, दूरान्वय दोपका भागी बनकर भी, धर्मे-
समीक्षासम्बन्बी और धर्म-विकाससम्बन्धी सामान्य तत्त्व, समाजपरि-
वर्तनसम्बन्धी सामान्य सिद्धान्त, संस्कृति-मीमांसा ओर मानवजाति-
शास्त्ज्ञोंकी धर्मोपपत्तिको उपस्थित करना पड़ा है । अक्सर पंडितोंमें समाज-
रचनाके नियमो, संस्कृति ओर धर्मको एकमेकं कर डाटनेकी आदत होती है ।
इसके कारण अनेक रेखक हिन्दू धमका विवेचन करते हुए गोटाला कर
কান ই । इहसकिए पहटे व्याख्यानमे समाज -र्चना, संस्कृति ओर धमेके
सम्बन्धोका खुलासा करना पड़ा ।
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