भारतीय संस्कृति | Bhaaratiya Sanskriti
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
535
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भौगोलिक विवेचन &
भासत । भारत के प्राधीन इतिहास कौ समझने के लिये इन विभागों को
समझना आवदयकीय है । उत्तरीय मैदान हिमालय व् विन्ध्याचल के मध्य
में स्थित है, व इसमें पन्ञाब, संयुक्तप्रान्त, बिहार व बज्ञाल का समावेश
होता है । इस मैदान में पत्थर का नाम नहीं है व इसमें से बहुतसी
नदियें बहतीं हैं । परिणामतः यह बहुत उपजाऊ है । इसीलिये यहां
मनुष्यों की आबादी भी बहुत घनी है । प्राचीन काल से ही यह भाग
राजनैतिक परिवतैनोंका केन्द्र रहा है । आर्यों ने इसीमें अपनी संस्कृृतिको
बिकसित किया, अपने बड़े २ साम्राज्य स्थापित किये व यहींसे दक्षिण पर
अधिकार जमाया था । यहींपर मानव व एेलवंक्षीय, इक्ष्वाकु व पुरूरवस् फ
बंशजों ने अपने २ राज्य का विस्तार किया था । बाहंद्रथ, शेशुनाग, नंद,
मौय्ये, गुप्त आदि साम्राज्य यहीं पर बने व बिगड़े । इस प्रकार भारत के
राजनैतिक इतिहास में उत्तरीय मेदान का अधिक महत्त्व है। दक्षिण की उच्च-
समभूमि के दोनों सिरोंपर, पूर्वी व पश्चिमी घाट पहाड़ हैं व विन्ध्याचल से
तुङ्गभद्रा तक इसका विस्तार है । यह भाग उत्तरीय मेदान के समान उपजाऊ
नहीं है । इसके मध्यभाग में घना जंगल है, जो कि आजकल मध्यप्रान्त के
बैतूल, भंडारा, बालाघाट, मंडला आदि जिलों में स्थित है । इसे आजकल
गोंडवाना” कहते हैं । प्राचीन कालमें यह “महाकान्तार” कहाता था, जिसका
उल्लेख समुद्रगुप्त के स्तम्भलेख में किया गया है । इस भागने भी भारत के
भ्राचीन राजनेतिक इतिहास में अपना हाथ यया था; यह उत्तरीय मैदान की
बराबरी तो नहीं कर सका । चद्रवी ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदुने यहीं पर
राज्य स्थापित कर अपना वंश चलाया था। राष्ट्रिक, आन्ध्र, चालक्य, राष्ट्रकूट
आदि राज्यवंशों ने यहां राज्य किया व भारतीय संस्कृति के विकास में अपना
हाथ बठाया । यहां के राजाओंने साधारणतया उत्तरभारत को जीतने के
बैसे प्रयन्न नहीं किये जेसे कि उत्तरीय भारतीयों ने दक्षिण के लिये किये थे ।
अरोक, ससुद्रगुप्त, अकबर आदि के इस दिशा में प्रयल्ल सफल रहे । दक्षिण-
मारत में प्राचीन कालसे ही पांज्य, चोल, केरल आदि राज्य स्थापित हुए थे ।
पुराण तो इन्हें भी उत्तर भारतीयों से ही सम्बन्धित करते हैं, किन्तु
ऐतिहासिक दृष्टिसे यह कथन कहां तक ठीक है, यह कददना कठिन है । इस भाग
क सिदश्द्रीपसे राजनैतिक सम्बन्ध विशेषं रुपसे रदह्य है । सांस्कृतिक दृष्टि से
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