नया साहित्य | Nayaa Saahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| गद्यकार महादेवी और नारी समस्या बिना यह सम्भव नहीं । महादेवीमें यही क्रान्तिकारी दृष्टिकोग मिलता है। पुराण- पंथियोंकी भरत्सना करते हुए वे लिखती हैं: “जिन मानवीय दुबेलताओंको वे स्वयं अविरत संयम और अटूट साधनासे भी जीवनके अन्तिम क्षणों तक न जीत सकेंगे उन्हीं दुबेलताओंको किसी भूली हुई अस्पष्ट सुधि-द्वारा जीत लेनेका आदेश वे उन अबोध बालिकाओंको दे डालेंगे जो जीवनसे अपरिचित है । उनकी आज्ञा है, उनके शास्त्रों की आज्ञा हैं और कदाचित्‌ उनके निर्मम ईश्वरकी भी आज्ञा है, कि वे जीवनकी प्रथम अगड़ाइको अन्तिम प्राणायाममें परिवर्तित कर दें, आशा की पहली किरणको विषादके निविड अन्धकारम समाहित करदें, ओर सुखके मधुर पुलकको ऑसुओंमें बहा ढालें। ` --प्रू, ७२-४३ जिससे एक बार भी चूक हुईं, उसकी क्‍या दुर्दशा होती है, इसे महादेवीने विशेष रूपसे “अतीतके चलचित्र ” के छठे संस्मरणकी मुख्य पात्री अठारह वर्षकी विधवाक्रे चित्र द्वारा समझाया हे। उसीपर विचार करते हुए लिखती हैं : “ अपने अकाल वैधव्यक्रे लिए वह दोपी नहीं ठहरायी जा सकती, उसे क्िसीने धोखा दिया। इसका उत्तरदायित्व भी उसपर नहीं रखा जा सकता । पर उस आत्माका जो अंश, हृदयका जो खंड उसके समान है, उसके जीवन-मरणके लिए केवल वही उत्तरदायी है। कोई पुरुष यदि उसको अपनी पत्नी नहीं स्वीकार करता, तो केवल इस मिथ्याके आधार पर वह अपने जीवनके इस सत्यको, अपने बालककों अस्वीकार कर देगी? संसारमें चाहे इसको कोई परिचयात्मक विशेषण न मिला हो, परन्तु अपने वालक के निकट तो यह गरिमा- * मयी जननी की संज्ञा ही पाती रहेगी। इसी कतेव्यक्रो अस्वीकार करनेका यह प्रबंध कर रही हैं। किसलिए १ केंबर७ इसलिए कि या तो उस वंचक समाजमें किर लौट कर गंगा-स्नान कर ब्रत उपवास, पूजा-पाठ आदिके द्वारा सती विधवाका स्वेंग भरती हुई और भूलोंकी सुविधा पा सके या किसी विधवा आश्रममें पशुके समान नीलामपर कभी नीची, कभी ऊँची बोलीपर बिके, अन्यथा एक एक बेँद विष पीकर धीरे-धीरे प्राणदे।' “एछ. ६०-६१ अवैध सन्तानके विषयमं लिखते हुए देखिये उनकी करणा क्रिस प्रकार इस तिरस्क्ृत नवजात शिश्वुकी ओर प्रवाहित होती ই: “छोटी छाल कली जैसा मुँह नींदमें कुछ खुल गया था और उसपर एक विचित्र सी मुस्कराहट थी, मानो कोई सन्दर सवण्न देख रहा हो । इसके आनेसे कितने भरे हृदय सूख गये, कितनी सूखी आँखोमें बाढ़ आ गयी और कितनों- की जीवनकी घड़ियोँ भरना दूभर होगया, इसका इसे कोई ज्ञान नहीं। यह अनाहूत, अवांछित अतिथि अपने सम्बन्धमें भी क्‍या जानता है ? इसके तेरह




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