जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भाग - 2 | Jainendra Siddhant Kosh Bhag - 2
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50 MB
कुल पष्ठ :
582
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)करण
~~ -.
१ | करण सामान्य निर्देश
१ | करणका श्रं शन्दिय व परिणाम)
इन्द्रिय व परिणार्मोको करण कदनेमें हेतु ।
२ | दृशकरण निदश
१ | दशकरणोंके नाम निर्देश |
२! कम प्रकृततियों्सप यधासम्भव १० करण अधिकार
निदश !
३ | गुणस्थानोंमें १० करण सामान्य व विशेषका श्रधि-
कार নিহা।
३ | त्रिकरण निर्देश
जिकरण साम निर्देश ।
२ | सन्यकत्व व चारित्र प्राप्ति विधिमें तीनों करण अवश्य
होते है ।
+% | मोहनीयके उपशम क्य व क्तयोपशाम विधि सें
जिकरणोंका स्थान --दे० वह वह नाम
# । अनम्तानुवन्धीकी विसयोजनामें त्रिकरणोंका स्थान
-दे° विसंयोजना
२ | त्रिकरणका माहात्म्य।
४ | तीनों करणोंके कालमें परस्पर तरतमता।
५ | तीनों करणोंकी परिणामविशुद्धियों में तरतमता ।
६ | तोनों करणोंका कार्य भिन्न-भिन्न कैसे है।
3 | अध प्रवृत्तकरण निर्देश
१ | श्रप:प्रवृत्ततरणका लक्षण।
२ | श्रथ!प्रवृत्तकरणका काल !
२ | प्रति समय सम्भव परिणामोंकी सस्या संदृष्टि व यंत्र ।
४ | परिणाम संख्यामें अंकुश व लागल रचना ।
५ | परिणामोंकी विशुद्ाके अविनाग प्रतिच्छेद, सृष्टि
व यंत्र।
६ | परिणामोंकी विशुद्धताका अल्पवहुत्व व उसकी सर्प -
वत् चाल
७ | अ्रष,प्रवृत्तकतरणके चार आवश्यक 1
सम्यक्त्व॒प्राप्तिति पहले भी सभी जीवेकि परिणाम
अध् “करण रुप ही होते दे ।
डी
अपूवकरण निर्देन
अपूर्वकरणका लक्षण ।
अपूबकरणका काल
प्रतिसमय सम्भव परिणामोकी सख्या ।
परिणामोंक्री विशुद्धतामें वृद्धिकम
श्रपूवंकरस्णकरे परिणामों की सदृष्टि व यत्र ।
अपूवकरणके चार आवश्यक |
7 कद 2 छ छ ~ 5
२. दकरण निर्देश
अपूर्वकरण व अ्रघःप्रवृत्तकरणमें कथचित् समानता
व श्रसमानता ।
अनियृत्तिकरण निर्देश
श्रनिवृक्तिकरणका लक्षय ।
अनिवृत्तिकरणक्रा काल |
अनिवृत्तिकरणमें प्रतिसमय एक ही परिणाम
+8 পি লি [4
द्
सम्भव है ।
४ | परिणार्मोकी विशुद्धतामें वृद्धिक्रम ।
५ | नाना जीवॉमें योगोंकी सद्ृशताका नियम नहीं है ।
६ | नाना जीवोंमें काण्डक घात आदि तो समान होते
हैं, पर प्रदेशवन्ध असमान ।
७ | अनिवृत्तिकरण व अपूर्व करणमें अन्तर ।
८ | परिणार्मोद्ी समानताका नियम समान समयवतीं
जीवोंमें ही है । यह केसे जाना ।
६ | यरुणश्रेणी आदि अनेक कार्योका कारण होते हुए
भी परिणामों में अनेकता क्यों नहीं ।
१. करणसामान्य निर्देश
१, करणका लक्षण परिणाम व इन्द्रिय--
रा वा ।६।१३।१।९२२।२६ करण चुरादि । =चगु आदि इन्द्धिपोंको
करण कहते है ।
ध. १/१ १,१६।१८०/१ करणा
परिणाम है ।
परिणामा । =करण হাল্কা অধ
२, इन्द्रियों व परिणामोंकी करण संज्ञा देनेमे हेतु--
ध ६।१,६-८/४/२१७।५ कध परिणामाण करण स्ण्णा । ण एम दोसो,
असि-बासीणं व सहायतमभावच्रिवक्खाए परिणामाण करणत्तुब-
लंभादों 15प्रश्न-परिणामोकी 'करण' यह सज्ञा कैसे हुई १ उत्तर--
यह कोई दोष नही, क्योकि, असि (तलवार ) और वासि ( बसूला )
के समान साधक्तम भावकी विवक्षा्मे परिणामौके करणपना पाया
जाता हे 1
भ आ।वि [२०/७१/४ क्रियन्ते रूपाव्गोचरा चबिज्ञप्तय एभिरिति
करणानि इन्द्रियाण्युच्यन्ते क चिक्करणशब्देन । = क्योकि इनके द्वारा
पादि पदार्थोक्त ग्रहण करनेवाले ज्ञान किये जाते है इसलिए
इन्द्रियोको करण कहते हैं 1
२. दकरण निर्देश
9, दशकरणोंके नाम निर्देश
गो. क मु (९३७५६९१ बेश्वुकदरणकरर्णं सकममौकट टदीरणा सत्तं । उद्~
युवस्राम निधत्त णिकाचणा होदि पडिपयडी ।४३७। = बन्धु, उत्कर्पण,
संक्रमण, अपकर्षण, उदीरणा सच्च, उदय, उपङ्ञम, निधन्ति ओर
नि काचना ये दश करण प्रकृति प्रकृति प्रति सभवे है ।
টু বি 7६ ₹৯ ৯৬০
२. कमप्रकृतियोंमें बथासम्मत्र दम करण अधिकार निर्देश
गोक भू 122१,४४४/६ ६३१४ ५५ सकमणाकरणुणा णवकऋरणा हॉति सव्य
आण । सेसाण दसक्रणा अपुव्वकरणोत्ति दसक्रणा 1०९! वंश
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोण
User Reviews
No Reviews | Add Yours...