मनुष्य का विराट रूप | Manushya Ka Virat Roop

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Manushya Ka Virat Roop by आनन्द कुमार - Anand Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 ९१४१ मनुष्य का विराट रूप १--एक्‌ मनुष्य क्या कर सकता है! एक सूर्य सस्पुर्णा विश्व को प्रकाशित कर देता है; आग की एक चिनगारी समस्त जगत्‌ को प्रज्वलित कर सकती ह; रोग का एक कीटा महामारी के रूप में प्रकट हो जाता है । एक परमाणु में कितनी शवित होती है, इसे हम आज प्रत्यक्ष देख-सुन रहे-हे । हमारे प्राचीन सनीषियों ने प्राज चे सहस्रो वर्ष पूर्व ही जान लिया था कि एक-एक कणा में श्रसीम शदित व्याप्त है । ससार में शक्तिहीन और निरर्थक कुछ भी नहीं है । एक शून्य भी किसी संख्या के महत्व को दस गुणा बढ़ा देता हैं। आंख का छोटा तिल भी लोक को प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष तथा जीवन को प्रकाशमय या अन्यकारमय बनाने की क्षमता रखता हैँ। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, कह॒ते है कि प्रलय के अन्त में एकाएंव में एक शिक्षु ही शेष रहता है। वही सृष्टि का पुनन॒निर्माए करता हैँ ॥ एक छोटा-सा बीज भी एक विज्ञाल वृक्ष को जन्म देकर एक सहाकानन की सृष्टि कर सकता है । एक मनुष्य कया कर सकता है ? मनुष्य तो विधाता की रचना का सबसे बड़ा चमत्कार ओर सर्वेप्रधान जीव साना जाता है | “भारतवर्ष में आजतक जो सबसे बड़ा विद्वान्‌ हुआ है, उसने बहुत सोच-विचार कर यह मत प्रकर किया ह-- ्टुह्य' ब्रह्य तदिदं व्रवीसि- नहि मानुपात्‌ श्रेष्ठतरं हि किचित्‌ ॥“--व्यास | प्र्थात्‌- यह्‌ भेद की वात मै तुमको बतता हं मनुष्य से बढ़कर संसार में 'प्रन्य कु नही हँ ! रहं ब्रह्यास्सि--स ही ब्रह्य हं--कौ भावना




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