सहज सुख साधन | Sahaj Sukh Sadhan

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Sahaj Sukh Sadhan by ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सहज सुख साधन ३ संसार स्वरूप शारीरिक तथा मानसिक दुःखो से भरा हुआ यह संसाररूपी खारा समुद्र है। जसे खारे समुद्र से प्यास बुती नही वैसे ससारके नाक्षवत पदार्थो के भोग से तृष्णा की दाह शमन होती नहीं । बडे २ सम्राट भी संसार के प्रपंचजाल से कष्ट पाते हुए अन्त में निराधा हो मर जाया करते हैं । इस संसार के चार गतिरूपी विभाग हैं-तरक गति, तिर्यंध गति, देव गति मनुष्य गति | इनमे से तिर्यच गति व मनुष्य गति के दुःख तो प्रत्यक्ष प्रगट है नरक गतिवं देव मतिके -दुख यद्चपि प्रगट नही तथापि आगम के द्वारा श्री गुरु क्चन प्रतीति से जानने योग्य हैं । (१) मरक गति के डुःख-- नरक गति मे नारकी जीव दीषे काल तक वास करते हुए कमी भी सुखशान्ति पाते नहीं। निरंतर परस्पर एक दूसरे से क्रोध करते हुए वचन प्रहार, शस्त्र प्रहार, कायप्रहुार आदि से कष्ट देते व पहते रहते हैं, उनकी भूख प्यास की दाह मिटती नहीं , यद्यपि वे मिट्टी सति है श्रैतरणी नदी कालाराजलपीते है परन्तु इससे न क्षुधा कांत होती है न प्यास दुभती है। शरीर वैश्रियिक होता है जौ चिदने भिदनेषर भी पारे के समान मिल जाता है । वे सदा मष्ण चाहते है परन्तु वे पूरी आयु भोगे बिना नरक पर्याय छोड नहीं सकते | जैसे यहाँ किसी जेल खाने में दुष्टदुडिधारी चालीस-पचास कंदी एक ही बड़े कमरे में रख दिये जावे तो एक ভু ই কী নান, কেহ कुवचन बोतेगे, लङगे, मारं पीटेगे भौर बे सब ही दुखी होंगे व घोर कष्ट पाने पर दन करेगे, वित्लावेगे तो मी कोई कंदी उन पर दया नही करेगा। उलटे वाक्‌प्रहारके वाणोसे उनके मन को छेदित किया जायगा । यही दशा नरृकधरा में नारकी जीवो की है। बे पंचेन्द्रिय सेनी नपुसक होते हैं । पाँचो इन्द्रियों के भौगों की तृष्णा रखते हैं। परन्तु उनके शमन का कोई साधन न पाकर निरंतर क्षोमित व संतापित रहते हैं । नारकियों के परिणाम बहुत खोटे रहते हैं | उनके अशुमतर कृष्ण, नील व कापोत तीन लेध्याएँ होती हैं | ये लेश्याएँ बुरे भावों के हृष्टान्त हैं। सबसे बुरे कृष्ण लेश्या के, मध्यम बुरे तील लेश्या के, जघन्य खोटे कापोत लेश्या के माव होते है ! नारकरयों के पुद्गलो का स्पदं, रत, गंध, वर्ण सब॑ बहुत अश्युभ बेदनाकारी रहता दै । दमि केकंश दुगेन्धमई होती




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