श्रीदादूदयाल की बानी | Shri Dadu Dayal Ki Bani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दादुद्याल की बानी |
मन का मस्तक मूँडिए। काम क्रोध के केस ॥
दादू बिषय बिकार सब। सतगुरु के उपदेस ॥ ऊद ॥
ভালু परदा भरम का | रहा सकल घट छाइ ॥
शुरू गोबिंद कृपा करइ । सहजेही मिंटि जाइ ॥ ७७ ॥
जिस मत साधू ऊधरे | सो मत दीया सोधघ ॥
मन लेइ मारग सूल गद्धि । सतगुरु को परमोध ॥ ७८ ॥
सोई मारग मन गहा | मारग मिलिए जाइ ॥
बेद कुरान ना कहा | सो गुरु दिया दिखाइ ॥ ७६ ॥
मन भुझंग यह बिष भरा | निरबिष क्योंद्धि न होइ ॥
दादु मिला गुरु ग्यानिया । निराबेष कीया सोइ ॥ <० ॥
एता कीज़इ आप ते । तन मन उनमन लाइ ॥
पच समाधी राखिप । दूजा सहज समाई ॥ <१ ॥
जीव जँजालेाँ मदि गया । उलक्चा नौ मन सूत ॥
फोइ एक खुलझे सार्थो । गुरु वाहक अवघूत ॥८२ ॥
अंचल चहुँ दिसि जात है । गुरु बाहक सा बेधि॥ `
दादू संगति साधु की । पारत्रह्म सो संधि ॥ ८३ ॥
शुरू अंकुस मानइ नही । उद्मद माता अंध ॥.
दादू मन चेतइ नहीं । काल न देखइ कंधच ॥ ८8 ॥
मारे बिन मानइ नहीं । यह मन हरि की आन ॥
ग्यान॑ खडग गुरुदेव का | ता संग सदा सुजान ॥ ८५ ॥ `
ज्वा ते* मन उठि चलइ | फेरि तहाँ ही राखि ॥
तहं दादू लय छीन करि। साधु कहृहिँ गुरु साखि ॥ ८६ ॥
मनही सो मर उपजई। मनही सँ मट घाइ॥
सीख चलइ गुरु साधु की। तो तूँ निर्मल होइ ॥<७॥
कवा अपना करि लिप । मनं इंद्री निज ठोर ॥
नावें निरंजन ज्लागि रहू । সালছ परिहरि ओर ॥ ८८४.
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