श्रीदादूदयाल की बानी | Shri Dadu Dayal Ki Bani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दादुद्याल की बानी | मन का मस्तक मूँडिए। काम क्रोध के केस ॥ दादू बिषय बिकार सब। सतगुरु के उपदेस ॥ ऊद ॥ ভালু परदा भरम का | रहा सकल घट छाइ ॥ शुरू गोबिंद कृपा करइ । सहजेही मिंटि जाइ ॥ ७७ ॥ जिस मत साधू ऊधरे | सो मत दीया सोधघ ॥ मन लेइ मारग सूल गद्धि । सतगुरु को परमोध ॥ ७८ ॥ सोई मारग मन गहा | मारग मिलिए जाइ ॥ बेद कुरान ना कहा | सो गुरु दिया दिखाइ ॥ ७६ ॥ मन भुझंग यह बिष भरा | निरबिष क्योंद्धि न होइ ॥ दादु मिला गुरु ग्यानिया । निराबेष कीया सोइ ॥ <० ॥ एता कीज़इ आप ते । तन मन उनमन लाइ ॥ पच समाधी राखिप । दूजा सहज समाई ॥ <१ ॥ जीव जँजालेाँ मदि गया । उलक्चा नौ मन सूत ॥ फोइ एक खुलझे सार्थो । गुरु वाहक अवघूत ॥८२ ॥ अंचल चहुँ दिसि जात है । गुरु बाहक सा बेधि॥ ` दादू संगति साधु की । पारत्रह्म सो संधि ॥ ८३ ॥ शुरू अंकुस मानइ नही । उद्मद माता अंध ॥. दादू मन चेतइ नहीं । काल न देखइ कंधच ॥ ८8 ॥ मारे बिन मानइ नहीं । यह मन हरि की आन ॥ ग्यान॑ खडग गुरुदेव का | ता संग सदा सुजान ॥ ८५ ॥ ` ज्वा ते* मन उठि चलइ | फेरि तहाँ ही राखि ॥ तहं दादू लय छीन करि। साधु कहृहिँ गुरु साखि ॥ ८६ ॥ मनही सो मर उपजई। मनही सँ मट घाइ॥ सीख चलइ गुरु साधु की। तो तूँ निर्मल होइ ॥<७॥ कवा अपना करि लिप । मनं इंद्री निज ठोर ॥ नावें निरंजन ज्लागि रहू । সালছ परिहरि ओर ॥ ८८४.




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